ईश निंदा और धार्मिक स्थलो को जलाना.. - Express News Bharat
September 24, 2023

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ईश निंदा और धार्मिक स्थलो को जलाना..

ईश निंदा और धार्मिक स्थलो का जलाना।

हाल में हुई पाकिस्तान जरानवाला में ईश निंदा की घटना वा उसकी प्रतिक्रिया में ईसाई समुदाय के चर्चो वा घरों को जला देना या ईसाई समुदाय जो की पाकिस्तान में अल्प संख्यक है उसको नुकसान पहुंचाना अपने आप में निंदनीय कार्य है। और अल्लाह और अल्लाह के रसूल के बताए हुए आदर्शों के खिलाफ़ है। इस्लाम में जिस ने खता की है उसके लिए सज़ा का प्राविधान है एक आदमी के जुर्म के लिए तमाम समुदाय को सज़ा देना यह इस्लाम के असूलो के खिलाफ़ है। इस वारदात और मणिपुर की हिंसा में कोई फर्क नहीं है। दोनो जगह जुल्म की चक्की चलाई गई है जो दुखद है। स्वीडन में लगातार क़ुरान करीम की बेअदबी की जा रही हैं जोकि स्वीडन सरकार की शाह पर मुसलमानों के खिलाफ एक घृणित कार्य किया जा रहा हैं। इन सब वारदातों में एक बात समान रूप से देखने को मिल रहीं है कि यह सारी वारदाते धार्मिक अल्प संख्यको के साथ सरकारी तन्त्र की मौजूदगी में और एक प्रकार की सहमति के साथ अंजाम दी जा रही है। ताकि बहुसंख्यक समाज का वर्चस्व कायम रहे और उसका राजनीतिक लाभ भी मिल सके। यह सरासर ज़ुल्म है चाहे पाकिस्तान, भारत, स्वीडन या किसी भी देश में किया जा रहा हो। धार्मिक आज़ादी के नाम पर पवित्र कुरान करीम की बेअदबी, ईशनिंदा के नाम पर चर्चो, बाईबल वा ईसाई समुदाय के घरों को जलाना या मैती समाज द्वारा कुकी समाज जोकि ईसाई समाज है उनके घरों को जलाना, चर्चो को जलाना, सैकड़ों की हत्या वा औरतों के बलात्कार, यह सब घृणित समाज की घृणित मानसिकता हो सकती हैं सरकारों का अपना राजनीतिक स्वार्थ हो सकता है मगर एक धर्म का आदर्श नही हो सकता।

इसलिए पाकिस्तान सरकार को इस पर फौरन करवाई करनी चाहिए। दोषियों को सजा देनी चाहिए और जिनका नुकसान हुआ है उनका पुनवास करना चाहिए। अगर यह सब नही किया जाता तो नबी करीम के आदर्शों के खिलाफ़ आपकी जिंदगी है और फिर आपमें और दूसरी सरकारों में कोई फ़र्क नही है। अगर आप न्याय नहीं करते तो इस्लामिक रिपब्लिक का तमगा जो आपने लगा रखा है उसको हटा दीजिए क्योंकि इस्लाम ज़ुल्म की इजाज़त नहीं देता है। बेहतर तो यह है कि स्वीडन सरकार को क़ुरान करीम की बेअदबी के मामले में चैताए कि यह कृत्य किसी भी हाल में काबिल कबूल नहीं है।

उम्मीद है मेरी यह अर्जदाश्त पाकिस्तान, स्वीडन और भारत के हुक्मरानों तक पहुंचेगी कि आप राजनीतिक स्वार्थों की वजह से अपने अल्प संख्यक नागरिकों का दमन बंद करें और जो हिंसा हो रही है उस पर फौरन अंकुश लगाएं।

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