बिलकिस बानो गैंगरेप कांड के दोषियों की रिहाई के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। गुरुवार को इस मामले में सुनवाई होनी है। 11 दोषियों की रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और सीजेआई एनवी रमना की बेंच ने मामले की सुनवाई करने के लिए तैयार हो गई है। कपिल सिब्बल ने इन दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। वहीं एक और वकील ने मामले की सुनवाई बुधवार को करने की याचिका दी थी जिसे भी कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
इन तीन महिलाओं ने दी गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल फाइल करके जिन तीन महिलाओं ने गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती दी है, उनमें सीपीएम नेता और सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली, मानवाधिकार कार्यकर्ता रूप रेखा वर्मा और जर्नलिस्ट एवं लेकिका रेवती लाल शामिल हैं। इनकी वकील अपर्णा भट हैं। इन सभी 11 दोषियों को 9 जुलाई 1992 के पॉलिसी रिजोलूशन नियम के तहत रिहा करिया गया है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी तत्काल सुनवाई पर राजी हो गए हैं। वहीं याचिकाकर्ताओं की मांग है कि दोषियों को फिर से गिरफ्तार कर जेल भेजा जाना चाहिए। उनका कहना है कि मामले की जांच सीबीआई ने की थी और सीबीआई कोर्ट ने ही उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी थी। ऐसे में गुजरात सरकार खुद से फैसला नहीं ले सकती ब्लिक इसके लिए सीआरपीसी की धारा 435 के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी जरूरी है। याचियों ने अपनी याचिका में कहा है कि दोषियों का अपराध बहुत ही गंभीर है और दूसरी तरफ केंद्र सरकार की सजा माफी नीति में रेप के दोषियों को बाहर रखा गया है।
क्या है मामला
यह वाकया 2002 के गुजरात दंगों से जुड़ा है। 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी। इस डिब्बे में अयोध्या से लौटने वाले कारसेवक सवार थे। इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इसके बाद गुजरात में दंगे की आग भड़क उठी। कत्लेआम शुरू हो गया। इस बीच बिलकिस बानो अपने परिवार के साथ अपने गांव भाग गईं।
बिलकिस की तीन साल की बेटी और परिवार के कुल 15 सदस्य उनके साथ थे। बिलकिस अपने परिवार के साथ छप्परवाड़ गांव के खेतों में छिपी थीं। 3 मार्च 2002 को लगभग 30 लोगों की भीड़ ने उनके परिवार पर हमला कर दिया। बिलकिस उस वक्त पांच महीने की गर्भवती थीं। उनके साथ रेप किया गया और परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई। बिलकिस ने जब केस दर्ज करवाया तो शुरू में सबूतों के अभाव में इसे खारिज कर दिया गया। बाद में वह मानवाधिकार आयोग पहुंचीं और फिर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। इस केस में 18 लोगों को दोषी पाया गया था जिसमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे