उम्र 29 साल, जानिए कौन हैं जामा मस्जिद के नए इमाम सैयद शाबान बुखारी…

नई दिल्ली: दिल्ली से हजारों मील दूर मुगल बादशाह शाहजहां के निमंत्रण पर उज्बेकिस्तान के बुखारा शहर से एक इस्लामिक धर्मगुरु सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी आए और जामा मस्जिद के इमाम की बागडोर संभाली। उन्होंने 25 जुलाई, 1656 को यहां ईद की नमाज का नेतृत्व किया। और 25 फरवरी को उनके वंशज और नोएडा की एमेटी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट रहे सैयद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी (पगड़ी पहनाने की रस्म) के संपन्न होने के साथ ही वे जामा मस्जिद के नायब इमाम बन गए। इस तरह से उनका जामा मस्जिद के 14 वें इमाम बनने का रास्ता साफ हो गया। हालांकि इमाम के पद पर सैयद अहमद बुखारी ही रहेंगे। अब चूंकि माहे रमजान के पवित्र माह को कुछ ही समय शेष है, इसलिए माना जा सकता है कि सैयद शाबान बुखारी जामा मस्जिद में अपने पिता की गैर-मौजूदगी में नमाज की अगुवाई किया करेंगे।

कब और किससे हुई शादी

13 नवंबर 2015 को शाबान बुखारी ने गाजियाबाद की एक हिंदू लड़की से शादी की. शुरुआत में उनका परिवार भी शादी को लेकर के राजी नहीं था लेकिन बाद में पूरा परिवार शादी के लिए राजी हो गया है और धूमधाम से उनकी शादी हुई. शादी के बाद 15 नवंबर को महिपालपुर के एक फार्महाउस में ग्रैंड रिसेप्शन दिया गया.शाबान के फिलहाल 2 बच्चे है उनकी पत्नी शबानी है.

कौन हैं नए इमाम शाबान बुखारी?

सैयद शाबान बुखारी दिल्ली की जामा मस्जिद के 14वें शाही इमाम हैं। उनका जन्म 1995 में दिल्ली में हुआ था। उन्होंने मदरसा जामा मस्जिद से अपनी शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। फिर उन्होंने दारुल उलूम देवबंद से आलिमियत की डिग्री हासिल की। 26 फरवरी 2024 को, उन्हें अपने पिता, सैयद अहमद बुखारी के उत्तराधिकारी के रूप में जामा मस्जिद का 14वां शाही इमाम घोषित किया गया। शाबान सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और विभिन्न समुदायों के बीच शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं। चूंकि शाबान युवा हैं, ऐसे में वो युवा वर्ग को शिक्षा और धर्म से जोड़ने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं। वे जामा मस्जिद के सबसे युवा शाही इमाम

भाईचारे और सौहार्द का संदेश
इस बीच कुछ लोग यह भी पूछ रहे हैं कि जामा मस्जिद में वंशानुगत प्रथा क्यों चल रही है, जो इमाम को अपने रिश्तेदारों को अगले इमाम के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देती है। क्या एक लोकतांत्रिक देश में यह उचित है? ‘इस प्रथा में कुछ भी गलत नहीं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। जो लोग इस सुस्थापित प्रथा पर सवाल उठाते हैं, उनके मन में इस समृद्ध परंपरा के प्रति कोई सम्मान नहीं,’ अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष मौलाना उमेर इलियासी कहते हैं। हालांकि, मौलाना इलियासी के विचार से बहुत लोग सहमत नहीं हैं। मशहूर लेखिका रक्षंदा जलील अपनी किताब ‘बट यू डोंट लुक लाइक अ मुस्लिम’ में जामा मस्जिद के इमाम के बारे में सवाल करती हैं, ‘न तो वह आलिम (इस्लामी कानून का विद्वान) है और न ही हाफिज (जिसने कुरान याद किया हो)। फिर इमाम का पद क्यों वंशानुगत है?’ बहरहाल, समूचे भारत के मुसलमानों के लिए एक बेहद तारीखी जामा मस्जिद को नए नायब इमाम मिलने के साथ ही एक उम्मीद जरूरी पैदा हो गई है कि अब यहां से भाईचारे और सौहार्द का संदेश सारे देश में जाया करेगा।

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