इस बात पर उत्तराखंड सरकार की पीठ ठोंकी जाए कि केदार नाथ मंदिर में दर्शन के लिए भी दर्शनार्थी अपनी व्यथा सुनाने पर मजबूर है और यह अपेक्षा कर रहे हैं की मोदी जी उनकी समस्या का समाधान करें। धार्मिक पर्यटन पर हमारी उत्तराखंड सरकार हर जतन कर रही हैं पर व्यवस्था है कि कमी रह जाती हैं और भक्तगण सोशल मीडिया पर आकर बखान कर देते हैं और पोल पट्टी खुल जाती हैं अरे भाई इतनी मुश्किल के बाद, पहाड़ों में पैदल सफर करने के बाद, दूर दूर से हर उम्र के श्रद्धालु यहां आते हैं और लाईन दर लाईन खड़े होते हैं दर्शन का नंबर आता है तो पीछे का धक्का लग जाता हैं। बेचारो के पास वी आई पी पास तो होता नहीं कि सबसे पहले अगली पंक्ति में दर्शन हो जाएं। यहां भी सिक्के का खेल।
आस्था, भक्ति एवं शक्ति सब सिक्कों के आगे नत मस्तक।
इस संबंध में एक शेर याद आता है।
“एक ही सफ में खड़े हो गए मेहमूदो अयाज़।
ना कोई बंदा रहा ना बंदा नवाज़।”
उस खालिक मालिक जिसने पैदा किया वह तो किसी को न उम्मीद नहीं करता किसी को दुख नहीं देता सबको देता है किसी से लेता कुछ नही। और हमारे पास उसका दिया हुआ ही तो हैं हमारी जान, मॉल, औलाद, घर, कारोबार और यहां तक कि हमारी सांसे सब उसी का ईनाम ही तो हैं। वो देने वाला दाता हैं और हम लेने वाले सवाली।
यह लेने देने का सिस्टम बन्द होना चाहिए और जो भी दर्शन करने आए उसका सम्मान, उसका सत्कार वी आई पी की तरह होना चाहिए। यहां सब तरह का कारोबार बंद होना चाहिए। चाहे केदारनाथ धाम हो, चाहे बद्रीनाथ केदारनाथ धाम और चाहे पीरान कलियर।
उत्तराखंड सरकार से विशेषतः अनुरोध है कि इस सब धरोहर का सही इस्तेमाल कीजिए जो आपको मालिक ने अता की हैं और श्रद्धालियो के लिए आसानी पैदा कीजिए।
केदारनाथ यात्रा में श्रद्धालुओं के सामने समस्याओं का अंबार! सरकार क्यों है चुप….
