एक हो जाओ तो बन सकते हो खुर्शीद ओ मुबीन

उत्तराखंड के निकाय चुनाव का कल बिगुल बज गया है सबने अपनी अपनी जुगत लगा ली है वार्डो का परिसीमन भी बदल दिया गया है और आरक्षण से अपने हित साधने की भरपूर कोशिश की जा रही है। इस सब तिकड़म बाजी के बीच तुम को भी तो अपना हित साधना है। वैसे तो सारी राजनीति इस समय हिंदू मुसलमान में बंटी हुई हैं तो तुम जुड़ के अपनी राजनीति करो। कुछ तो अलग करके दिखाना पड़ेगा तभी तो उत्तराखंड निकाय चुनावों में पार्षद, प्रधान वा मेयर बन पाओगे। आदत तो तुम्हारी एक एक सीट पर पांच पांच छह छह खड़े होने की है ताकि तुम्हारी दाल बंट जाए या गिर जाए फिर अपनी इस नाकामी पर खून के आंसू बहा लो। कामयाब तो सिर्फ एक को होना है और अपने झगड़े में कामयाब अपने प्रतिद्वंदी को कर देते हो। तुम्हारे प्रतिद्वंदी कहते हैं और टीवी पर चिल्ला रहे हैं कि मुसलमान वोट जिहाद करता हैं यह तो निरा झूठ ही है मगर एक्का तो कर सकते हो। अब के निकाय चुनाव में यह नया अध्याय लिख लो और कम से कम दस पार्षद और पंचायतों से संख्या के अनुसार प्रधान, प्रमुख बन जाओ। ताकि अपने और समाज के हितों के लिये सरकार से कुछ काम तो कर सको।

अगर इस बार यह समझ में आगया कि ” मुत्तहिद हो तो बन सकते हो खुर्शीद ओ मुबीन” तो आगे तो रास्ता रोकने की तैयारी है वन नेशन वन इलेक्शन का फार्मूला आ रहा हैं और उसमें सिर्फ एक ही फॉर्मूला हे “एक्का” नहीं तो चिल्लाने से तो कोई काम होने वाला नहीं। नीतिगत काम करना पड़ेगा और अपने और अपने समाज के वजूद को बचाना होगा नहीं तो यह मस्जिदों की तरह यह तुम्हारे घरों में भी अपना सह अधिकार ढूंढने की कोशिश करेंगे। वक्त आ गया है अपने अधिकारों के लिए सजग होने का और एक इत्तेहाद की नई पहल करने का। मौजूदा दौर में इस अलख को तो जलाना ही पड़ेगा।

उत्तराखंड में भी डेमोग्राफी बदलने के नाम पर नये नये आयाम लिखे जायेगे, यू सी सी से लेकर सख्त भू कानून, मूल निवास के नए क़ानून बनाने की होड़ लगाई जाएगी और उसके क्या दूरगामी परिणाम होंगे यह समझने के लिए प्रतिनिथत्व की आवश्यकता है इसलिए इस सही वक्त का सही इस्तेमाल करो नहीं तो फिर पच्छतावत क्या होत जब चिड़ियां चुग गई खेत।

खुर्शीद अहमद सिद्दीकी,
37 प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून उत्तराखंड।

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