नई संसद भवन में दानिश अली को यह कैसी सजा…..

बीती कल नई पार्लियामेंट में बीजेपी एमपी के द्वारा कुंवर दानिश अली एमपी को अनाप शनाप शब्दो का प्रयोग करना देश में मौजूदा जनतंत्र की असल तस्वीर पेश करता है और जनतंत्र की मर्यादा में आई गिरावट को परिलक्षित करता है। भरे सदन में सांसद को धमकी देना, उस आड़ में पूरे समाज को लांछित करना, खुली धमकी देना, क्या यही संसद की मर्यादा है और कोई विरोध का स्वर नही आता है बल्कि पास बैठे हुए हर्षवर्धन जी मुस्कुरा रहे हैं। इससे प्रतीत होता है कि शायद मौन सहमति की व्यवस्था लागू थी। वैसे तो तीर कमान से निकल चुका है। संसद के सभापति क्या कार्रवाई करते हैं या आपसी सहमति से इस घिनौनी वारदात का पटापेक्ष कर दिया जाता है मगर यह वारदात लोकतन्त्र की हत्या करने जैसी थी जिसकी एक वजह शायद कुंवर दानिश अली की अपने अकीदा तौहीद पर कायम रहना था जिसकी उन्हें पब्लिकली अपमानित कर सजा दी गई। वैसे तो आम तौर पर सियासत में लोग अपने आदर्शों से, अपने मूल्यों से समझौता कर लेते हैं मगर ऐसे कम ही सियासतदां हैं जो अपने अकीदे को बचाने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करते हैं और शायद कुंवर दानिश अली उनमें एक हो जो जिल्लत के सौ साला ज़िंदगी को इज्जत के कुछ पल जीने को वरीयता दें वरना रास्ते तो बहुत सारे निकल आते हैं। वैसे तो राजनीति के उलटफेर वही जाने मगर यह वारदात इंसानियत के साथ, लोकतंत्र के साथ, पार्लिमेंट डेमोक्रेसी के साथ एक घिनौना अपराधिक कृत्य था जिसकी सजा मिलनी चाहिए और आगे के लिए तय होनी चाहिए यह सदन की गरिमा का सवाल है।

आपका,
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून।

Share
Now