झारखंड में मे आखिर क्यों लुभा रहा है कालाकोट? आखिर क्यों है, IAS, IPS और IFS भी वकील बनने…..

झारखण्ड के मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने यह घोषणा की थी कि सेवानिवृत्त लोगों को काम पर रखने के बदले नए लोगों को नौकरी दी जाएगी। जाहिर सी बात है कि सेवानिवृत्त लोगों के लिए सचिवालय की गलियां पहले की तुलना में तंग होने लगीं और यह एक अहम कारण है कि अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद का वक्त न्यायालय में बिताने को इच्छुक दिख रहे हैं। ऐसे लोग एक-दो नहीं, इनकी संख्या दर्जनों में है। इसमें आईएएस, आईपीएस, आई एफ एस, आदि ऐसी तमाम सेवाओं के लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन में कार्यपालिका के शीर्ष पदों पर कार्य किया है। इससे उन्हें जीवन भर के अनुभवों को एक साथ इस्तेमाल करने का अवसर के साथ- साथ अनुभव भी मिलता है।

बता दे, जो वर्तमान में नौकरी करते हुए विधि स्नातक की पढ़ाई पूरा करना चाहते हैं। ऐसा पहले भी होता रहा है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नहीं। पूर्व में भी मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी अशोक कुमार सिंह, पीपी शर्मा आदि ने नौकरी के दौरान ही विधि स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। इनमें पीपी शर्मा ने एक-दो मामलों के बाद कोर्ट से संबंधित मामलों में अधिक रूचि नहीं ली और जल्द ही प्रैक्टिस छोड़ गए। लेकिन पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार सिंह सफलतापूर्वक अभी भी वकालत के पेशे में हैं और कई विभागों के पैनल में नामजद अधिवक्ता हैं। वकालत में इनकी सफलता दूसरों के लिए मार्गदर्शक का काम करती है। खास करके नई पीढ़ी के लिए जो वकालत को अपना पेशा बनाना चाहते हैं!

इन सभी अधिकारियों ने अलग-अलग समय में अपने विभागों के माध्यम से विधि स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के लिए अनुमति मांगी थी जिसे स्वीकार कर लिया गया है। वकालत की पढ़ाई के लिए एडीजी अनुराग गुप्ता ने भी आवेदन किया है। अधिसंख्य अधिकारी पढ़ने-लिखने में अपनी रूचि के कारण इस पेशे को अपनाना चाह रहे हैं। कई अधिकारी तो ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर पहले ही कई पुस्तकें लिखी हैं। और कई विधि पुस्तकों का संपादन भी कर चुके हैं।

रिपोर्ट अमित कुमार सिन्हा (रांची)

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