केरल हाईकोर्ट के Justice VG Arun ने ऐसे माता पिता की सहराना की है जो अपने बच्चो को बिना किसी धार्मिक भेद भाव या जातिगत पहचान के बड़ा कर रहे हैं. हाईकोर्ट के जज जस्टिस वी. जी. अरुण (Justice VG Arun) ने जब यह कहा कि “धर्म और जाति से परे बच्चे ही देश की असली उम्मीद हैं,” तो यह न केवल एक कानूनी विचार था, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने वाला नैतिक संदेश भी था।
उनके बयान के मुख्य मायने:
नवभारत की नींव: जब बच्चे बिना धार्मिक या जातिगत पहचान के पलते हैं, तो वे पूर्वाग्रहों से मुक्त होते हैं। ऐसे बच्चे निष्पक्ष सोच रखते हैं और इंसानियत को प्राथमिकता देते हैं — जो कि किसी भी प्रगतिशील समाज की नींव होती है।
माता-पिता की सराहना: जज साहब ने खासतौर पर उन माता-पिता की प्रशंसा की जो अपने बच्चों को केवल “इंसान” के रूप में बड़ा कर रहे हैं। ऐसे अभिभावक समाज में बदलाव लाने के असली नायक हैं।
संवैधानिक मूल्यों की पुनःस्थापना: भारतीय संविधान समानता, धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे की बात करता है। जब एक बच्चा धर्म और जाति से ऊपर उठकर बड़ा होता है, तो वो इन मूल्यों का जीवंत उदाहरण बनता है।
Justice VG Arun की ये सोच हमें भारत के संविधान के मूल्यों — समानता, धर्मनिरपेक्षता और विचार की स्वतंत्रता — की याद दिलाती है। धर्म‑जाति आधारित किस्म‑तार की कड़ियाँ टूटने में उन्हें विश्वास है।
जब बच्चे किसी पहचान के बंधन में नहीं होंगे, तब वे उन नैतिक प्रश्नों को उठाएंगे जो अक्सर समाज टाल देता है। वे कहते हैं कि सीरत‑फितरत की तरह भाषा की शुद्धता और सभ्यता की गरिमा बचाने में तर्कवाद तथा संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए।