त्तराखंड के शहरों में स्थित बाजार अब एक रूप, रंग और डिजाइन में नजर आएंगे। इसके लिए आवास विभाग ने पहली वाह्य आवरण (फसाड) नीति जारी कर दी है। स्वेच्छा से आवेदन करने वाले लोगों को आवास विभाग बिल्डिंग बायलॉज के अनुसार एक अतिरिक्त मंजिल बनाने की छूट देगा। देश के कई राज्य इस फार्मूले को पहले ही अपना चुके हैं।
प्रदेश के प्रमुख शहरों को जयपुर की तर्ज पर एक रंग-रूप व डिजाइन के अनुसार विकसित करने के लिए आवास विभाग लंबे समय से वाह्य आवरण नीति बना रहा था। सितंबर में राज्य कैबिनेट वाह्य आवरण नीति पर मुहर लगा चुकी थी, अब विभाग ने 17 पेज की नीति जारी कर दी है। अपर सचिव सुनील श्रीपांथरी की ओर से यह आदेश जारी किए गए हैं।
स्थानीय वास्तुकला को बढ़ावा: नीति के तहत स्थानीय विकास प्राधिकरण वाह्य आवरण विकसित करने के लिए किसी बाजार या रोड का चयन कर वहां स्थानीय वास्तुकला, इतिहास और पंरपरा के अनुसार डिजाइन तय करेगा। इसके बाद लोग तय डिजाइन के मुताबिक अपने घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के आवरण में बदलाव कर सकेंगे। उत्तराखंड के पहाड़ी शहरों में पठाल और लकड़ी के नक्काशीदार डिजाइन के साथ ही धार्मिक महत्व के शहरों में धार्मिक विशिष्टता वाले डिजाइन पर जोर दिया जाएगा। पुरातात्विक महत्व के भवनों के डिजाइन में कोई बदलाव नहीं होगा।
पार्किंग होगी तो ही मिलेगी अतिरिक्त मंजिल
नीति के तहत लोगों को संबंधित विकास प्राधिकरण में वाह्य आवरण बदलाव के लिए आवेदन करना होगा। इसके बाद उन्हें बिल्डिंग बायलॉज के अनुसार एक मंजिल की अतिरिक्त छूट तो मिल सकती है, लेकिन इसके लिए उन्हें पार्किंग सुविधा उपलब्ध करानी होगी। साथ ही स्ट्रक्चरल इंजीनियर की रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी होगी। यदि पुराने भवन का डिजाइन बदला जाता है तो उसके लिए भवन का नक्शा उपलब्ध कराना होगा। विकास प्राधिकरण को आवेदन के एक महीने के अंदर आवेदन पर निर्णय लेना होगा। साथ ही एक साल के अंदर इस काम को पूरा किया जाना होगा।
तीन फीट से ऊंचा साइन बोर्ड नहीं
नीति में साइन बोर्ड की ऊंचाई अधिकतम तीन फीट तय की गई है। साथ ही लंबाई भी दुकान की कुल लंबाई के 90 फीसदी तक ही हो पाएगी। दुकानों पर फ्लैक्स, बैनर लगाने की मनाई होगी। दुकान के नाम एक साइज के अक्षरों में लिखे जाएंगे, दुकान का ब्रांड, उपलब्ध सामान का विवरण भी तय डिजाइन के अनुसार लिखा जाएगा। ऐसी बिल्डिंगों की बाहरी लाइट, शामियाना भी एक प्रकार के ही होंगे। स्थानीय जिला विकास प्राधिकरण इसका नियंत्रण करेंगे।