देहरादून में शनिवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपनी सरकार के तीन साल का बखान करते हुए इसे “ऐतिहासिक और साहसिक” करार दिया। समान नागरिक संहिता (UCC), सख्त भू-कानून, धर्मांतरण विरोधी कानून और अतिक्रमण के खिलाफ अभियान को उन्होंने अपनी उपलब्धियों का तमगा बताया। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहानी बयां करती है। बड़े-बड़े वादों का शोर तो खूब हुआ, मगर जनता को राहत नसीब नहीं हुई।
हकीकत की तस्वीर:
UCC का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार इसे लागू करने में नाकाम रही। नियमावली को मंजूरी मिले महीनों बीत गए, पर अमल अभी तक अधूरा है। भू-कानून में छेद इतने कि शहरी इलाकों में जमीन की खरीद-फरोख्त बदस्तूर जारी है। चारधाम यात्रा में हर साल श्रद्धालुओं को टूटी सड़कों, जाम और इलाज के अभाव में तड़पते देखा गया। अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों के आशियाने उजाड़े गए, लेकिन पुनर्वास का कोई ठोस प्लान नहीं दिखा।
सरकार का बचाव:
धामी ने दावा किया कि “लैंड जिहाद और थूक जिहाद” जैसे मुद्दों पर सख्ती जरूरी थी। उन्होंने कहा, “हमारा मकसद देवभूमि की शुद्धता बचाना है।” लेकिन सवाल यह है कि क्या ये सख्ती चुनिंदा है? क्या ये कानून सामाजिक तनाव को बढ़ाने का सबब नहीं बन रहे?
सच्चाई का आईना:
तीन साल में धामी सरकार ने बड़े-बड़े नारे तो दिए, पर नतीजे छोटे और कमजोर रहे। UCC और भू-कानून जैसे कदम कागजी शेर साबित हुए, जबकि चारधाम यात्रा और रोजमर्रा की समस्याओं पर लापरवाही बरकरार है। जनता पूछ रही है – साहसिक फैसले कहां हैं, जब जिंदगी वही पुरानी है?