बांका के उभरते युवा कवि सुजीत कुमार संगम ने अपनी रचना के माध्यम से संवेदना इस प्रकार व्यक्त किया। “और एक दिन लौट जाऊंगा मैं
बड़ी खामोशी से, इस दुनिया को अलविदा कहते हुए,
न कोई पदचाप पीछे छूटेगी,
न कोई आवाज़ बताएगी कि मैं था।
मैं आऊंगा और चला जाऊंगा —
जैसे पत्ते आते हैं शाखों पर,
फिर गिर जाते हैं मौन ऋतु-परिवर्तन में।
मेरे जाने पर न कोई पर्व थमेगा,
न कोई घड़ी उलझेगी समय से,
सिर्फ एक साँस होगी अंतिम —
जो भीतर ही भीतर विलीन हो जाएगी।
शब्द रह जाएंगे अधूरे कागज़ पर,
कुछ प्रश्न, जो कभी पूछे नहीं गए,
और कुछ उत्तर,
जिन्हें मैंने खुद से भी छुपा लिया था।
पर न कोई पछतावा होगा,
न कोई अनकहा बोझ,
क्योंकि जीवन को जितना पाया,
उससे अधिक की कभी चाह नहीं थी।
जो प्रेम किया — वो मेरी रूह में बसा रहा,
जो द्वेष मिला — उसे भी नम्रता से ओढ़ लिया,
हर रिश्ता — एक अनुभव था,
हर बिछावन — एक अस्थायी ठिकाना।
मैं लौट जाऊंगा…
जैसे नदी लौटती है सागर की गोद में,
जैसे राग लौटता है मौन की शांति में।
और तब,
किसी अजनबी शाम में,
जब कोई पत्ता गिरेगा चुपचाप,
या कोई दीप बुझेगा बिना हवा के,
तो शायद…
तुम्हें मेरी विदाई की ख़बर मिल जाएगी।
फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा,
सूरज उगेगा, पंछी गाएंगे,
लोग हँसेंगे, दुनिया चलेगी,
बस मैं… कहीं बहुत दूर हो जाऊंगा।”मनोरंजन प्रसाद, ब्यूरो चीफ, बांका।