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कुदरती या प्राकृतिक आपदाओं का एक कारण यह भी…..

क्या होता है जब आपदा आती हैं?
बेबसी, फरियाद, जान औ मॉल का नुकसान, सपनो का टूट जाना, अचानक अप्रत्याशित आफत, ना बचाओ होता है, ना दवा होती है, सब कुछ बह जाता है, सब कुछ जल जाता है, सब कुछ दब जाता हैं, परिवार, मर्द औरतें, बूढ़े, जवान बच्चे, कुदरत इसके लिए वक्त भी नही देती, बहुत ताकतवर सरकारें भी हाथ मलती रह जाती हैं, बस हवा का झोंका आता है और सब कुछ खत्म।

“अब रह जाती हैं एक दुखद याद”

मगर शायद हमारी सरकार भूल जाती है कि तुम इतने ताकतवर नहीं कि कुदरत की मार को झेल सको, कुदरत ने सिकंदर को सफहहस्ती से मिटा दिया है, रोमन सल्तनत को ख़ाक में मिला दिया है।

यही शायद नियति है।
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश की आपदाएं कितनी भयावह स्वरूप में आती हैं इसकी ताज़ा मिसाले, चमोली गौरीकुंड वा मंडी की आपदाएं हमारे लिए और तमाम इंसानों के लिए एक सबक की तरह है ।

“सदियों ने खता की थी ।
लेहमो ने सज़ा पाई ।”

हाल ही में इसके विपरीत, प्रायोजित, संगठित आपदाएं जो इंसानी नफ़रत की त्रासदी के रूप में आती है और तमाम इंसानियत को शर्मसार करती हैं वो हाल में मणिपुर में हो रही है जिसमे इंसानी जिंदगी की कोई कद्रो कीमत नही, घरों, दुकानों की कोई कद्रो कीमत नही, मां बेटी की कोई कद्रो कीमत नही, भारत में होने वाली भाई चारगी की कोई कद्रो कीमत नही, बस कद्रो कीमत है तो नफरत की।

“क्या भारत वासियों एक दूसरे की गर्दन काट कर राम राज्य स्थापित करना है। क्या सम्राट अशोक के इतिहास को दोहराना है। क्या एक दूसरे की खून की होली खेलनी है जबकि तुम्हारी सरहदे महफूज नहीं है।

कैसे बुद्धिमान है आप लोग, अपने ही भारत को जला रहे हो। अपने ही भारत वासियों को काट रहे हो, अपनी ही अबलाओ की इज्जत तार तार कर रहे हो। यह खेल अब नूह मेवात हरियाणा में शुरू हो गया है और अब पता नही भारत की किन किन हिस्सो मे फैलेगा। प्रायोजित जो है। शायद इससे राजनीतिक, सामाजिक वा धार्मिक लाभ मिल जाए। मगर राजनीति भी तभी होगी जब मुल्क में शांति होगी नागरिक अमन चैन से होगे, धर्म भी तभी बचेगा जब इंसाफ होगा, समाज भी तभी सुरक्षित होगा जब आपसी मोहब्बत होगी।

प्रायोजित आपदाओं का प्रतिफल कुदरती आपदाएं होती हैं जिनको रोकना किसी की ताक़त में नही होता है।
इसलिए,
” तुम जमीन वालो पर रहम करो।
अल्लाह तुम पर रहम करेगा ।”

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