मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की अनियंत्रित विकास की कदम ताल।

सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले में पूरे देश में अनधिकृत विकास और निर्माण के लिए दिशा निर्देश दिए है और कहा गया है कि विनियमितिकरण के नाम पर जो प्राधिकरण फीस लेते हैं वह अनाधिकृत निर्माण से होने वाले नुकसान के मुकाबले में कुछ भी नहीं है। देहरादून शहर में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण यानी एम डी डी ए की स्थापना वर्ष 1984 में की गई थी और तभी से समग्र और नियमित विकास के लिए मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है। एम डी डी ए की कार्य प्रणाली और दूसरे सरकारी विभागों से अलग नहीं थी इसलिए देहरादून शहर एक अनाधिकृत कंक्रीट का जंगल बन गया।

अब देहरादून में हालत यह है कि वायु प्रदूषण, यातायात प्रदूषण, जल प्रदूषण और कूड़े से होने वाला प्रदूषण आम बात हो गई है। सड़क पर इतनी यातायात है कि सारे प्रबंधनों के बाद भी रोजाना घंटों जाम लग जाते है। सड़कों पर पैदल चलना मुश्किल हो गया है क्योंकि फुटपाथ का भी अतिक्रमण हो गया है। आवासीय कॉलोनी में खूब व्यवसायिक बहु मंजिला भवन बन रहे हैं जिनके एयर कंडीशन से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण को दूषित कर रही हैं उनसे जो इलेक्ट्रॉनिक और सॉलिड वेस्ट निकलता है उसका कोई निस्तारण प्लान प्राधिकरण के पास नहीं है। अनियंत्रित विकास का यह आलम है कि 75% आबादी अनाधिकृत भवनों में रह रही हैं। देहरादून सेस्मिक जॉन 5 में स्थित है यह सारे भवन भूकंप विरोधी डिज़ाइन पर नहीं बनाए गए है बहुत सारी बहु मंजिला भवनों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में अग्नि शमन का कोई माकूल इंतेज़ाम नहीं है। अब इन अनाधिकृत भवनों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों का एम डी डी ए नियमितीकरण कर मोटी रकम वसूल रहा है मगर सरकार के खजाने में कितना हिस्सा आ रहा हैं और कितने की बंदर बाट हो रही है क्योंकि बगैर बंदर बाट के देहरादून और मसूरी क्षेत्र इतना अनियंत्रित विकास की श्रेणी में कैसे आ गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूरे उत्तराखंड में 584 और देहरादून में 129 मलिन बस्तियां कैसे विकसित हो गई जो शहर की नदी नालों के किनारे बस गई और सरकार ने करोड़ों रुपए की परियोजनाओ से इन क्षेत्रों को विकसित कर दिया अब नियमितीकरण के द्वारा इनको भी नियमित करने की पहल एम डी डी ए को करनी चाहिए ताकि सब जगह समग्र विकास हो सके।

बंदर बाट का दंश हमारे विकास को दीमक की तरह चाट रहा है। देहरादून वैली भी इससे अछूती नहीं है। इस प्रथा को रोकने की जरूरत है नहीं तो कुछ दिनों में यह व्यवस्था चरमरा कर गिर जाएगी।

भवदीय,
खुर्शीद अहमद सिद्दीकी, 37 प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून उत्तराखंड।

Share
Now