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गुरुकृपा से वंचित मनुष्य का जीवन होता जा रहा है अस्तित्वविहीन

देश को सही दिशा में ले जाने के लिए अब गुरुओं को निभानी होगी अहम भूमिका

गुरुकृपा से अभिसिंचित समस्त गुरु भक्तों के लिए एक पावन पर्व और शुभ अवसर होता है गुरुपूर्णिमा का दिन

अनुपपुर अमरकंटक/ वर्तमान में समूचे भारतवर्ष में जातिगत वैमनस्यता बढ़ती जा रही है और चंद लोगों के द्वारा अपनी राजनीतिक स्वार्थपरता साधने के लिए समाज को कई वर्गों में बांटने का कार्य योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है और लोग आपसी मतभेद के चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं। इन सभी परिस्थितियों का उत्पन्न होना यह प्रदर्शित करता है कि हमारा समाज गुरु का मार्गदर्शन खोकर स्वयं ही गुरु के पद पर आसीन होने की होड़ में लगा हुआ है और अपनी झूठी शान स्थापित करने के स्वार्थी स्वभाव के कारण समाज सहित स्वयं के पतन की ओर अग्रसर होता जा रहा है। इस सामाजिक पतन को रोकने के लिए हम सभी को गुरुकृपा से अभिसिंचित होकर अपने ज्ञान चक्षुओं को खोलने के आवश्यकता है, जिससे कि इस देश में दीमक की तरह फैल रही मानसिक गुलामी से देश और देशवासियों को सुरक्षित बनाया जा सके। गुरु शिष्य परंपरा को इस समाज में जीवित रखना समाज की सुरक्षा के दृष्टिगत अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है और वर्तमान पीढ़ी को संस्कारवान बनाए जाने के लिए गुरु शिष्य परंपरा एक सामाजिक संजीवनी है। परम धर्म सांसद श्रीधर शर्मा ने सामाजिक परिवेश में उत्थान पर गुरु महिमा के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए बताया कि समाज में वर्तमान में विभिन्न प्रकार की कुरीतियों के समावेश के उपरांत आज हमारी सनातन संस्कृति अपना अस्तित्व खोजती प्रतीत हो रही है और सनातन धर्म और संस्कृति की दुहाई देने वाले समाज के ठेकेदारों अर्थात हमारे सान्निध्य में पलकर बड़ी हुई हमारी वर्तमान पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर होते हुए पूर्णतया पाश्चात्य संस्कृति में लीन होती जा रही है और हम आधुनिकता के झूठे आडंबर के प्रदर्शन में इस प्रकार से संलिप्त हैं कि अपने देश की परंपरा को विलुप्त होते देखने वाले अन्तिम पीढ़ी होने के अपयश का ठीकरा आने वाली पीढ़ियां हमारे सिर पर फोड़ेंगी। आज वर्तमान में इस सामाजिक दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है कि हमने अपने नौनिहालों को गुरु शिष्य परंपरा की शिक्षा नहीं दी, गुरु के माहात्म्य को नहीं समझाया और गुरु की महिमा को वर्णित नहीं किया। गुरु इस संसार के सृजनकर्ता हैं और इस संसार को गति प्रदान करने में गुरु की विशेष कृपा है, वर्तमान पीढ़ी को संस्कारित कर गुरु की महिमा का प्रभाव उन्हें बताने की आवश्यकता है, तभी इस संसार को संस्कारयुक्त कल प्रदान किया जा सकता है, अन्यथा इस संसार का सामाजिक पतन होना लाज़िमी है। गुरु ही वह धुरी है, जिसके चारों ओर इस संसार की गति निर्धारित होती है।वर्तमान पीढ़ी में गुरु शिष्य परंपरा
को जीवंत बनाए रखना हम सभी की सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है
कि विद्यालयों और महाविद्यालयों में अध्ययनरत नई पीढ़ी को गुरु के महत्त्व के विषय में बताएं। समाज के उत्थान के लिए गुरुभक्ति और गुरु की आराधना अत्यंत आवश्यक है और भगवद भक्ति के समान है। किसी भी व्यक्ति विशेष के जीवन में सफलता पर गुरु का विशेष स्थान होता है और गुरु समूचे समाज का पालनहार होता है। वर्तमान शिक्षण संस्थानों में भी पश्चिमी सभ्यता का समावेश हो जाने से वर्तमान में गुरु शिष्य परंपरा विलुप्तता की ओर है और यही सामाजिक पतन का सबसे बड़ा कारण है। गुरुपूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित दिवस है, जो कर्मयोगियों के व्यक्तित्व के विकास हेतु एवं प्रबुद्धता प्राप्त करने के लिए गुरु के समक्ष अपना भाव व्यक्त करने का सुअवसर प्रदान करता है। यह पर्व हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों के अनुयायियों के द्वारा अपने आध्यात्मिक शिक्षकों, अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता
प्रदर्शित करने हेतु मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस उत्सव को महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचन्द्र जी को सम्मान देने के लिए पुनर्जीवित किया। ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।इस पावन अवसर पर लोग आध्यात्मिक रूप से अपने मन में गुरू को स्थापित कर उनकी आराधना करते हैं और गुरु चरणों का आशीर्वाद लेकर इस पावन पर्व को धूमधाम से मनाते हैं।

समाज के प्रबुद्ध वर्गों को एक बार फिर संभालनी होगी कमान : श्रीधर शर्मा

परम धर्म सांसद श्रीधर शर्मा ने बताया कि वर्तमान में इटावा में बीते दिनों हुई घटना के बाद समाज में कई तरह की बातें लोगों के द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल की जा रही हैं जो कि वर्तमान पीढ़ी के साथ साथ आने वाली पीढ़ी के लिए एक धीमे जहर की तरह फैल रहा है। अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के फिराक में कई लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से “फूट डालो शासन करो” की नीति अपनाते हुए आपसी मतभेद की स्थितियां उत्पन्न की और लोगों को उकसाने का कार्य बखूबी किया। इसका परिणाम आगामी भविष्य में देश की एकता और अखंडता के लिए नुकसानदायक साबित होगा। नवीन के पीढ़ी के शिक्षित युवाओं को इस पर विचार करने की आवश्यकता है कि युवाओं के रोजगार और आगामी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के विषय में किसी भी राजनेता को कभी भी जिरह करते आपने नहीं सुना होगा और न ही किसी डिबेट में इस तरह की चर्चाएं की जाती हैं। केवल धर्म और जाति के नाम पर बड़े पैमाने पर खेल खेलने की कोशिश की जा रही है और समूचा भारतवर्ष धीरे धीरे इस सियासी खेल में उलझता जा रहा है, जिसके परिणाम बहुत ही भयावह होंगे। वर्तमान पीढ़ी को इस आपसी वैमनस्यता को दरकिनार कर एक सुसज्जित और अखंड भारत के निर्माण की नींव रखी जानी चाहिए, जिससे कि भारतवर्ष को वास्तविक रूप से स्वतन्त्र भारत के रूप में स्थापित किया जा सके।

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