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अगली बैठक को लेकर किसान असमंजस में- बोले’ सरकार को बेनकाब करने जाएंगे….

  • कृषि क़ानूनों के मसले पर केंद्र सरकार और किसानों के बीच आठवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही।
  • यह बैठक नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में हुई। बातचीत के दौरान सरकार ने कृषि क़ानूनों में संशोधन की बात कही जबकि किसानों ने फिर कहा कि उन्हें संशोधन नहीं चाहिए,
  • बल्कि उनकी मांग क़ानूनों को रद्द करने की है। अगली बैठक 15 जनवरी को दिन में 12 बजे होगी। 

नई दिल्ली:बीते शुक्रवार किसानों की सरकार के साथ बातचीत एक बार फिर से विफल रही। अब 15 जनवरी को किसान नेता 9वीं बार केंद्रीय मंत्रियों से मिलेंगे। लेकिन इस बैठक को लेकर भी किसान नेताओं में कोई उत्साह नहीं है और करीब सभी किसान नेता ये मान रहे हैं कि अगली बैठक भी बेनतीजा ही रहने वाली है।

ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब किसान नेताओं को इन बैठकों से समाधान की कोई उम्मीद ही नहीं है तो वे बैठक में शामिल ही क्यों हो रहे हैं? किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां इस सवाल पर कहते हैं, ‘शहीद भगत सिंह से भी ऐसे ही सवाल पूछे जाते थे कि जब आपको न्यायालय से न्याय मिलने को कोई उम्मीद नहीं है तो आप हर तारीख पर अदालत क्यों जा रहे हैं। तब भगत सिंह का जवाब होता था कि हम अदालत इसलिए जा रहे हैं ताकि पूरे देश की अवाम को अपनी आवाज पहुंचा सके। हम भी इन बैठकों में सिर्फ इसीलिए जा रहे हैं।’

इन बैठकों के बेनतीजा रह जाने के लिए सरकार को जिम्मेदार बताते हुए उग्राहां कहते हैं, ‘बातचीत हमारे कारण नहीं, बल्कि सरकार के कारण विफल हो रही हैं। हमारी मांग तो बहुत सीधी है कि तीनों कानूनों को रद्द किया जाए, उसके बिना हम वापस नहीं लौटेंगे। सरकार को ये बात हम कई बार बता चुके हैं, लेकिन फिर भी वो हर बार हमें बुलाती है और ये मांग नहीं मानती। वो अगली बार भी ऐसा ही करेंगे, लेकिन हम फिर भी बैठक में शामिल होंगे ताकि सरकार को बेनकाब कर सकें।’

किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां कहते हैं कि तीनों कानूनों को रद्द किया जाए, उसके बिना हम वापस नहीं लौटेंगे।

किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी भी मानते हैं कि सरकार के साथ हो रही इस बातचीत से समाधान नहीं निकालने वाला है और 15 जनवरी को होने वाली वार्ता भी पूरी तरह से विफल होने जा रही है। इसके बावजूद भी बैठक में शामिल होने के बारे में वे कहते हैं, ‘सरकार ने पहले ही इस आंदोलन को बदनाम करने की बहुत कोशिश की है। कभी हमें खालिस्तानी कहा गया, कभी आतंकवादी कहा गया और कभी कहा कि हम नकली किसान हैं। हम अपनी तरफ से सरकार को ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहते कि वो किसानों को बदनाम करे। इसीलिए हम बैठक में आते हैं। ऐसे में सरकार ये नहीं कह सकती है कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं, पर किसान ही इससे पीछे हट रहे हैं। इसीलिए हम ये जानते हुए भी अगली बैठक में जाएंगे कि उस दिन भी समाधान तो नहीं होने वाला है।’

किसानों की सरकार से बातचीत इसलिए अटक गई है, क्योंकि किसान कानूनों के रद्द होने से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं और सरकार कानूनों को रद्द करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में सरकार लगातार ये प्रयास कर रही है कि बातचीत के जरिए कोई बीच का रास्ता निकाला जा सके।

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