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हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बोले कानून को इस तरह ढाला गया कि गरीब के साथ हो सके भेदभाव…

ओडिशा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा है कि कानून को इस तरह से ढाला गया है जिससे गरीब के साथ भेदभाव हो सके। उन्होंने कहा कानून अमीर और गरीब के लिए अलग-अलग तरह से काम करता है।

ओडिशा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने गुरुवार को एक लेक्चर के दौरान कहा- कानून को इस तरह से ढाल दिया गया है कि वो गरीब और अमीर के लिए अलग-अलग तरह से काम करता है। उन्होंने कहा कि हाशिये पर खड़े व्यक्ति के लिए इंसाफ पाना बहुत मुश्किल है। उसके सामने कई चुनौतियां हैं। कानून ने खुद को ऐसे ढांचे में डाल लिया है कि वो गरीब के साथ भेदभाव करने लगा है। गरीब के लिए सिस्टम दूसरे तरीके से काम करता है। बेगर्स कोर्स, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और महिला मजिस्ट्रेट कोर्ट ये ऐसी जगह है जहां गरीब पहली बार न्यायिक व्यवस्था को देखता और समझता है।

आंकड़ों की बात करते हुए जस्टिस मुरलीधर ने कहा- 3.37 लाख अंडर ट्रायल लोगों में से 21 फीसदी लोग और सजा पाने वाले 21 फीसदी लोग अनुसूचित जाति से हैं। उसी तरह 37 फीसदी दोषी और 34.3 फीसदी लोग जो अंडर ट्रायल में हैं वो ओबीसी समाज से आते हैं। उसी तरह सजा पाने वाले और ट्रायल झेल रहे 17.4 फीसदी और 19.5 फीसदी लोग मुसलमान हैं।

न्यायिक मदद की गुणवत्ता पर चिंता जाहिर करते हुए जस्टिस मुरलीधर ने कहा- हाशिये पर खड़े लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है। आम धारणा यही है कि लोग कानूनी मदद या कानूनी सलाह लेना सम्मान का विषय मान लेते हैं जबकि उन्हें ये मानना चाहिए कि ये उनका अधिकार है। ठीक वैसे ही जैसे सरकारी राशन की दुकानों पर फ्री या कम दाम देकर राशन खरीदते हुए लोग ये सोचते हैं कि वो अच्छी गुणवत्ता की डिमांड नहीं कर सकते। उन्होंने ये भी कहा कि एक रिसर्च बताती है कि दलित और आदिवासी समुदाय से आने वाले वकील जो मानवाधिकार से जुड़े लेते हैं उनपर माओवादियों या नक्सलवादियों का वकील होने का ठप्पा लगा दिया जाता है।

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