सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि केवल आपराधिक आरोपों या सजा के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कानून का उल्लंघन होगी यदि इसे बिना उचित प्रक्रिया और स्पष्ट कारणों के बगैर किया गया है।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि ऐसे सार्वजनिक अधिकारी जो मनमाने ढंग से कार्रवाई करते हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, “कानून अपने हाथ में लेने वाले अधिकारियों को जवाबदेही की सीमा में रखा जाना चाहिए।”
निर्णय में दिए गए मुख्य निर्देश निम्नलिखित हैं:
1. नोटिस और अपील का अधिकार: ध्वस्तीकरण आदेश से प्रभावित व्यक्ति को संपत्ति खाली करने या आदेश को चुनौती देने का अधिकार होगा। उन्हें एक निश्चित समयसीमा के भीतर इसकी सूचना दी जाएगी।
2. कारण बताओ नोटिस: प्रस्तावित ध्वस्तीकरण से पहले 15 दिनों का कारण बताओ नोटिस देना आवश्यक है, और यह नोटिस प्राप्ति के बाद ही मान्य होगा।
3. डिजिटल पोर्टल: अगले तीन महीनों में एक डिजिटल पोर्टल स्थापित किया जाएगा, जिसमें सभी ध्वस्तीकरण नोटिसों की जानकारी उपलब्ध होगी, जैसे नोटिस की तारीख, कारण और सुनवाई की तारीख। यह कदम अवैध नोटिस और पिछली तारीख के नोटिस के दुरुपयोग को रोकने के लिए लिया गया है।
4. व्यक्तिगत सुनवाई: प्रभावित पक्ष को अधिकृत अधिकारी के समक्ष अपनी बात रखने का अवसर प्रदान किया जाएगा।
5. आवश्यक ध्वस्तीकरण: केवल उन्हीं हिस्सों को ध्वस्त किया जाएगा जो अवैध रूप से निर्मित हैं और जिनका हटाया जाना अनिवार्य है।
6. सार्वजनिक निष्कर्ष: सुनवाई का निष्कर्ष एक सुसंगत आदेश के रूप में आएगा, जिसमें गृहस्वामी के तर्क, प्राधिकरण के निष्कर्ष, और संपत्ति के ऐसे हिस्सों का विवरण होगा जिन्हें हटाया जाना आवश्यक है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि आपराधिक आरोप के आधार पर किसी की संपत्ति को निशाना बनाया जाता है और समान परिस्थिति में अन्य संपत्तियों के साथ यह कार्रवाई नहीं की गई हो, तो इसे अवैध माना जाएगा। यदि ध्वस्तीकरण सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए पाया गया, तो जिम्मेदार अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराया जाएगा। अधिकारियों के वेतन से पुनर्निर्माण की लागत और हर्जाने की वसूली भी की जाएगी।
इन निर्देशों का उल्लंघन होने पर अवमानना कार्यवाही और अभियोजन शुरू करने का भी प्रावधान है।
यह फैसला एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) की याचिका पर आया, जिसने अदालत से पीड़ितों के लिए न्याय की अपील की थी। एपीसीआर ने नागरिक समाज के सहयोग से एक सुझाव प्रस्तुत किया, जिसमें अवैध ध्वस्तीकरण को रोकने के लिए उचित प्रक्रिया का ढांचा, अधिकारियों के लिए जवाबदेही तंत्र, और पीड़ितों के लिए मुआवजा योजना का प्रस्ताव शामिल था।
उदयपुर के राशिद खान और जावरा के मोहम्मद हुसैन के मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए पाया कि बिना सुनवाई के इनकी संपत्तियां आरोपों के आधार पर ध्वस्त कर दी गईं थीं। इन मामलों में वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह और उनकी कानूनी टीम (फौजिया शकील, उज्जवल सिंह, शिवांश सक्सेना, तस्मिया तालेहा, और एम हुजैफा) ने एपीसीआर का प्रतिनिधित्व किया।
इस फैसले से कई पीड़ित परिवारों को राहत मिली है, और यह मनमानी ध्वस्तीकरण की घटनाओं को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।