पहाड़ और समंदर के बीच से गुजरती है कोंकण रेलवे, ये था ‘मेट्रोमैन’ का पहला करिश्मा…
नेता जॉर्ज फर्नांडिस और मधु दंडवते का सपना था इस एरिया का पिछड़ापन दूर किया जाए, 760 किलोमीटर में फैला कोंकण रेल रूट महाराष्ट्र के रोहा से शुरू होकर कर्नाटक के ठोकुर तक फैला है, कोंकण रेलवे कारपोरेशन लिमिटेड एक पहेली सरकारी कंपनी थी जिसने पब्लिक बांड के द्वारा लोगो से पैसा इकट्ठा किया था क्योंकि यह परियोजना बेहद खर्चीली थी,मधु दंडावते और जॉर्ज फर्नांडिस के प्रयासों से कोंकण रेलवे परियोजना शुरू हुई थी। जब ब्रिटेन और अमेरिका के इंजीनियर्स ने इस दुर्गम रेल मार्ग पर रेलवे लाइन बनाने से इंकार कर दिया तब मधु दंडावते ने एक भारतीय इंजीनियर ई श्रीधरन को इसके निर्माण का जिम्मा सौंपा।
मुंबई-केरल के बीच करीब 46 घंटों का सफर
सूत्रों के अनुसार इस लाइन के निर्माण के लिए आवश्यक इनपुट की मात्रा 20 वीं सदी में पूरी होने वाले सबसे कठिन कार्यों में से एक थी, इसकी स्थापना 26 जनवरी 1998 में हुई थी। इसका मुख्यालय नवी मुंबई में स्थित है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कोकण रेलवे की शुरुआत की थी,कोंकण रेलवे के जनक डॉ. ई. श्रीधरन थे. एक जमाना था जब रेल मार्ग से मुंबई-केरल के बीच करीब 46 घंटों का सफर करना पड़ता था,ये है सदी की सबसे बड़ी चुनौती, जीतने के लिए बनाने पड़े 2000 ब्रिज, 92 सुरंगें, कोकण रेलवे के बाद नया रूट खुला,अब मुंबई से केरल जाने के लिए रेल मार्ग से करीब 36 घंटे लगते हैं। इस लिहाज से यात्रा सुखद हुई है। इस शुरुआत का एक और सुखद पहलू है कि रेल आने से पूरे कोकण क्षेत्र का समग्र विकास हुआ है। 20 सालों में केरल, गोवा और कर्नाटक के तटीय हिस्सों में पर्यटन बढ़ा है। इसका लाभ स्थानीय लोगों को मिल रहा है। इन्हीं क्षेत्रों से लोग पहले मुंबई पलायन करते थे। अब उन्हें अपने ही क्षेत्र में रोजगार के अवसर मिलने लगे हैं।
अरब सागर और पश्चिमी घाट के समानांतर
कोंकण रेलवे एक रेलवे लाइन है जो अरब सागर और पश्चिमी घाट के समानांतर भारत के पश्चिमी तट के साथ चलती है। यह रेल मार्ग कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन द्वारा निर्मित और संचालित है। रेलवे लाइन महाराष्ट्र के रोहा से कर्नाटक के ठोकुर तक फैली हुई है, अपने पूरे सफर के दौरान, यह कई नदियों, पहाड़ों और अरब सागर से गुजरता है, इस रेलवे ट्रैक का निर्माण लगभग असंभव सा लगता था, यात्रा के दौरान कुछ शानदार प्राकृतिक दृश्यों की झलक दिखती है कयुकि यह रेलवे लाइन एक तरफ अरब सागर और दूसरे तरफ पश्चिमी घाट के बीच में फैली हुई है, इसलिए इस रेलवे ट्रैक को पूरा करने के लिए 2000 पुलों और 92 सुरंगों की आवश्यकता थी।
कोकण रेलवे के 760 किमी लंबे रूट में करीब 92
टनल और 2 हजार से ज्यादा छोटे-मोटे पुल हैं। शुरुआत में जब इस रूट से 4-5 ट्रेनें चलती थीं, तब जितनी परेशानी होती थी, उसके मुकाबले अब नहीं होती है। अब इस रूट से हर मौसम में करीब 51 ट्रेनें रोजाना गुजरती हैं।कोकण रेलवे में 51 प्रतिशत हिस्सा भारतीय रेलवे का और 22 प्रतिशत महाराष्ट्र, 15 प्रतिशत कर्नाटक, 6 प्रतिशत गोवा और 6 प्रतिशत केरल का है।
कोंकण रेलवे का प्रमुख हिस्सा महाराष्ट्र राज्य में स्थित है और यह 375 किमी रेलवे लाइन साझा करता है। रोहा से शुरू होने वाला, आखिरी स्टेशन जो महाराष्ट्र में है। महाराष्ट्र में महत्वपूर्ण स्टेशन रोहा, चिपलून और रत्नागिरी हैं।
अन्य दो राज्यों की तुलना में गोवा में काफी कम हिस्सेदारी है। गोवा में निर्माण कार्य करते समय बड़ी चुनौतियों का सामना किया गया। गोवा में बहने वाली नदियों के माध्यम से रेलवे लाइन को पार करने के लिए कई पुलों का निर्माण किया गया था। गोवा में ज़ुआरी नदी पर पुल 1319 मीटर लंबा है। गोवा में रेलवे लाइन की कुल लंबाई 110 किमी है जो पेरनेम रेलवे स्टेशन से अशनोती तक शुरू होती है, मडगाँव मुख्य रेलवे स्टेशन है,कर्नाटक में लंबाई: कर्नाटक में, कोंकण रेलवे का अंतिम स्टेशन ठोकुर है, हालांकि लाइन मंगलौर रेलवे स्टेशन की ओर जाती है जिसे दक्षिणी रेलवे द्वारा प्रबंधित किया जाता है। कर्नाटक में रेलवे लाइन की कुल लंबाई 245 किमी है। उडुपी और कारवार कर्नाटक के महत्वपूर्ण स्टेशन हैं।
रिपोर्ट:-अमित कुमार सिन्हा (रांची)