इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम उल हराम से शुरू होता है अल्लाह ने साल के 12 महीने बनाए हैं जो मोहर्रम से शुरू होकर जिल हिजा यानी कुर्बानी और हज वाले महीने तक खत्म हो जाते हैं जिल हिजा को कुर्बानी का महीना कहते हैं जिसमें हजरत इब्राहिम ने अल्लाह ताला के हुक्म को पूरा करने के लिए अपने बेटे हजरत इस्माईल की कुर्बानी दी मगर अल्लाह के हुक्म से हजरत इस्माईल की बदले दुमबे की कुर्बानी हुई इसलिए तमाम साहिब हैसियत मुसलमान पालतू मवेशियों की इस महीने में हज पूरा होने के बाद कुर्बानी करते हे इस कुर्बानी को सुन्नत इब्राहिमी कहा जाता हैं कुछ लोग ऐतराज करते हैं कि हजरत इब्राहिम ने तो अल्लाह के लिए अपने प्रिय बेटे की कुर्बानी की थी तो मुसलमानों अपने बेटों की कुर्बानी क्यों नहीं करते बकरा बकरी तो कोई बहुत प्रिय चीज नहीं हैं यह बेतुका सवाल हैं क्योंकि एक नबी की आजमाइश और एक आम इंसान की आजमाइश में फर्क हे अल्लाह हर इंसान पर उतना भार डालता है जितना उसमें उठाने की ताकत होती हैं इसलिए बाकी साहिब हैसियत लोगों पर मवेशियों की कुर्बानी को वाजिब किया गया है और इस महीने के अंदर सारी दुनिया के मुसलमान हाजी बैतुल्लाह की जियारत करते हैं और कुर्बानी करते हैं । इससे अगले महीने से इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से इस्लामी नए साल की शुरुआत होती है 12 महीना में 4 महीने हुरमत वाले कहलाते हैं जिस में सब तरह की जंग जदाल से मुमानियत की गई है मगर अगर कोई आपके ऊपर हमला करता है तो उस दशा में अपनी डिफेंस के लिए आप भी हथियार उठा सकते हैं वरना यह चारों महीने एतराम वाले महीने कहलाते हैं मोहर्रम के महीने में तारीख ही एतबार से बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुई है जिसमें एक महत्वपूर्ण घटना 10 मोहर्रम यानी आशूरा के दिन हजरत इमाम हुसैन की कर्बला में शहादत अहमियत की हामिल है हजरत हुसैन ने उसे वक्त की इस्लाम के उसूलों के खिलाफ बनी हुकूमत को तस्लीम करने की बजाय अपने परिवार के लगभग 72 अफराद की कुर्बानी देना पसंद किया जिसमें दूध मुहा बच्चा अली असगर भी शामिल शहादत हुए और हजरत हुसैन को सजदे की हालत में शहीद कर दिया गया। इस्लाम में हक के लिए कुर्बानी और शहादत की बहुत अहमियत है इसलिए साल की शुरुआत भी अल्लाह की राह में और हक को कायम करने के लिए अपने पूरे परिवार की शहादत को याद करके जोर आखिर में भी सुन्नत इब्राहिमी के अरकान को पूरा करके की जाती हैं। इस्लाम में अल्लाह के रजा के लिए इस्लाम की शरीयत के ऊपर पूरा पूरा अमल और उस के खिलाफ़ हर तरह की कुर्बानी देना यह जज्बा शहादत हुसैन से मिलता है और इसी जज्बे के तहत मुसलमान हर पल, हर घड़ी, हर दिन और हर साल अपनी जिंदगी गुजारते है।
खुर्शीद अहमद सिद्दीकी, देहरादून।