राजनीति का धार्मिककरण देश और लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक…

यह लेखक के अपने विचार हैं

आखिर राजनीति का धार्मिककरण क्यों किया जा रहा है? यदि राजनीति का धार्मिककरण हो जायेगा तो सत्ता पर काबिज लोग संवैधानिक संस्थाओं, शासनिक प्रशासनिक कार्यालयों के धार्मिकरण की साज़िश करेंगे। क्या एक धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में यह सही है?क्या संवेधानिक संस्थाओं, क्या शासनिक- प्रशासनिक कार्यालयों में धार्मिक स्थल होने चाहिए?राजनीतिक सभाओं में धार्मिक नारो  और झंडों का क्या काम? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिन पर पूरे देश को सोंच विचार करना चाहिए।संवेधानिक संस्थाएं व कार्यायल जनता की समस्याओं के लिए बनायी गयीं हैं।वहां धार्मिक गतिविधियों का क्या काम?

पूजा,प्रार्थना, इबादत करने के लिए हर धर्म के लिए अपने अपने धार्मिक स्थल हैं तो फिर संवैधानिक संस्थाओं और कार्यालयों में ऐसा क्यों किया जा रहा है?संवैधानिक संस्थाएं और शासनिक प्रशासनिक कार्यालय पूरे देश और हर धर्म वर्ग जाति के लोगों के काम उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हैं और धार्मिक स्थल हर धर्म के अपने-अपने हैं। चाहे राजनीति हो संवैधानिक संस्थाएं हों या शासन प्रशासन के दफ़्तर हों सब धार्मिकता से स्वच्छ होना चाहिए।आस्था निजी है और संविधान पूरे देश का।

सरकारी संस्थाएं,शासन प्रशासन के दफ़्तर पूरे देश के हर धर्म हर वर्ग के लोगों के लिए हैं।एक दशक से हम देख रहे हैं भारत की राजनीति का किस प्रकार से धार्मिकरण किया जा रहा है। संवैधानिक संस्थाओं, शासनिक प्रशासनिक, पुलिस कार्यालयों में पूजा स्थल बना दिये गये हैं।जो देश और लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है।जिसके भविष्य में दूरगामी परिणाम होंगे।जिसमें सिर्फ धार्मिकता नज़र आ रही है और यदि राजनीति में ऐसे ही धार्मिकता रहेगी तो देश का विकास संभव नहीं।धार्मिकता की आड़ में नफ़रत घृणा पैदा करके लोगों को बांट कर अपने गलत मंसूबों को कामयाब किया रहा है। और जिस नेता में कट्टरवाद है वो कभी देश का भला नहीं कर सकता। किसी भी नेता और पार्टी की राजनीतिक सभाओं में लगने वाले धार्मिक नारे और धार्मिक कटृरवादी सोंच पैदा करने वाले भाषण एक धर्म निरपेक्ष संविधान के खिलाफ है।

भारत का संविधान धार्मिक नहीं है वल्की हर धर्म को अपनी आस्था के अनुसार चलने की स्वातंत्रा देता है इसलिए ये धर्मनिरपेक्ष संविधान है और भारत की राजनीति, शासनिक-प्रशासनिक गतिविधियां सब संविधान के अंतर्गत हैं इसलिए ये सभी संवैधानिक संस्थाएं धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए।माननीय सर्वोच्च न्यायालय को इस पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए।राजनीति धार्मिकता से स्वच्छ होनी चाहिए। राजनीति में धार्मिकता नहीं होनी चाहिए।अगर राजनीति में धार्मिकता होगी तो जो सत्ता पर काबिज होगा वो संवैधानिक संस्थाओं से लेकर शासनिक प्रशासनिक कार्यालयों तक का धार्मिकरण करने की साज़िश करेगा। राजनीतिक सभाओं में धार्मिक नारों और धार्मिक कटृरवादी सोंच पैदा करने वाले भाषणों पर प्रतिबंध लगना चाहिए। राजनीतिक सभाओं में सिर्फ जनता और देश के मुद्दों की बात होनी चाहिए।भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारत के संविधान की शुरुआत किसी धर्म के शब्द,प्रार्थना अथवा ईश्वर के किसी श्लॉक से नहीं की क्योंकि वो जानते थे कि भारत में सभी धर्मों के लोग रहते हैं, यदि संविधान में ऐसा किया गया तो देश में विकास सम्भव नहीं हो पायेगा और देश अंधकार में चला जायेगा और कट्टरवादी सोच के नेता मासूम जनता की सोंच पर कब्जा कर लेंगे।

इसलिए उन्होंने संविधान की शुरुआत”हम भारत के लोग”श्लोक से की।क्योंकि संविधान का निर्माण हम लोगों के विकास, खुशहाली, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक, कमजोर, गरीब, दलित, मज़लूमो का हक़ और धर्म को अपनी आस्था के अनुसार मानने जैसी तमाम व्यावस्थाओं के लिए बनाया गया है जिससे हम भारत के लोगों का जीवन शांति और एकता के साथ सुचारू रूप से चल सके और हमारे अंदर एक दूसरे के प्रति कट्टरवादी और घृणित सोंच न पनप सके।और भारतीय संविधान में सभी लोगों को अपने धर्म के अनुसार, इबादत या प्रार्थना करने और उसका प्रचार प्रसार करने की स्वातंत्रता रहै।जिसकी जिसमें आस्था हो वो उसी की इबादत या पूजा करे।वो आपकी व्यक्तातिगत स्वातंत्रता है और भारत का संविधान हर किसी को व्यक्तिगत स्वातंत्रता का अधिकार देता है।जहां राजनीती में धार्मिकता होगी वहां विकास होना सम्भव नहीं है और ये सब आपकी आंखों के सामने हैं।आप देख रहे हैं हमारे देश में क्या हो रहा है कुछ समय से हमारा देश किस दौर से गुज़र रहा है।जहां राजनीति में धार्मिकता को लाकर खड़ा कर दिया गया है।अब ये भी समझ लीजिए इबादत या पूजा दिखावा न हो आपकी जिसमें आस्था हो उसको सच्चे मन से याद करो।अगर आपको मंदिर जाना है या मस्जिद या जिस धार्मिक स्थल में आपकी आस्था हो वहां जाओ सच्चे मन से इबादत या पूजा करो दिखावा नहीं होना चाहिए।

नेता अगर किसी धर्म स्थल पर जाते हैं तो पीछे पीछे मीडिया का केमरा और एंकर दहाड़े मार मार कर देखो फला नेता मंदिर में गया फला नेता दरगाह पर गया ये देखो वो नेता कितना सेकुलर है और वो कितना कटृरवादी है। और आपको यही पता नहीं वो नेता इबादत और पूजा के दिखावे की आड़ में अपने ग़लत कामो पर पर्दा डाल रहा है। और आपको बेवकूफ बना कर अपनी सियासत को चमका रहा है।आज की मीडिया ये नहीं दिखाती के इन नेताओं ने अपने क्षेत्र में कितना विकास कराया जनता की परेशानियों और मुद्दों को कितना विधानसभा और संसद में उठाया।जनता ने अपना प्रतिनिधित्व नेता जी को अपनी समस्यायों को हल करने और क्षेत्र का विकास करने के लिए दिया है या ये दिखाने के लिए दिया है कि नेता जी कितने धार्मिक हैं और कितने सेकुलर और हम इनकी अंधभक्ति में गुम हो जाते हैं। ऐसा नेता और पार्टी न जनता का हो सकता है और न धर्म का।और आप देख रहे हैं धार्मिकता की आड़ में आपका ध्यान देश की तरक्की और विकास से हटा दिया गया है।

देश में अब शिक्षा, रोज़गार,स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति देश के विकास से संबंधित मुद्दों पर चर्चा नहीं होती। दिन रात मीडिया का चीखना चिल्लाना दो हिंदू और दो मुस्लिम प्रवक्ताओं को चेनल पर बैठाया और धार्मिक तुष्टिकरण डिबेटे चालूं। मीडिया ने सूचनाएं देना बंद कर दिया है।आपकी आंखों पर अब धार्मिकता का चश्मा लगा कर आपको धार्मिक कट्टरवाद की सौंच में धकेला जा रहा है जिससे आप सिर्फ इनकी जुगलबंदी में उलझे रहैं।अधिकतर कटृरवादी सोंच के नेता जनता को यही दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि आपका धर्म खतरे में है लेकिन धर्म कभी किसी का खतरे में नहीं रहा है वल्की नेताओं ने आपकी सोंच को कट्टरवादी बनाके आपको ख़तरे में डाल दिया है जिससे इनकी गंदी राजनीति की दुकान चलती रहे। और यही नेता आपको और हमें धर्म का नारा धर्म का झंडा देकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए हमसे पत्थर फिकवायेंगे और अपने बच्चों को बिदेशो में पढ़ायेंगे।और आप देख रहे हैं देश के हालात किया है। देश की आर्थिक स्थिति क्या है? कितना रोजगार है?वाकि आप देख रहे हैं देश किस और जा रहा है। धन्यवाद।
                             

    मो राशिद अल्वी
                        (युवा छात्र व सोशल एक्टिविस्ट
)

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