उत्तराखंड में मलिन बस्तियों का नियमतीकरण।

उत्तराखंड की 584 वा देहरादून की 129 मलिन बस्तियों जो नाले खाले, नदियों के किनारे बसी है जिनमे ग्यारह लाख से अधिक नागरिक रहते हैं लगभग 1.80 लाख छोटे बड़े, पक्के कच्चे मकान बने हैं अक्टूबर 2024 तक अध्यादेश के द्वारा इस आबादी को हटाने की कवायद रुकी हुई है मगर हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश इस तरह की बस्तियों को हटाने का पारित हैं।

तो मलिन बस्तियों को हटाने के आदेशानुसार तलवार तो लटकी हुई है। अब या तो सरकार इतनी बड़ी आबादी को नियमतीकरण करे या मानवीय आधार पर इनको विस्थापित करे यह सरकार को फैसला तो करना ही है कि यह सब मानव त्रास्दी न बन जाए। यह मलिन बस्तियों की आबादी वैसे भी सरकार का सॉलिड वोट बैंक होता है इसलिए हर सरकार इस तरह की आबादियों को बसने देती हैं और उसमे तमाम विकास कार्य, सरकारी योजनाओं को लागू किया जाता हैं और बस्ती वाले यह समझते हैं की हमारे पास बिजली, पानी के कनेक्शन सरकार ने दे रखे हैं इसलिए हमारी बस्ती भी पक्की।

और वो मेहनत कर दो मंजिल, तीन मंजिल पक्के घर बना लेते हैं सरकार सड़क पानी, सीवर लाईन का काम कर देती हैं और बस्ती वाले आश्वस्त हो जाते ही है कि अब उन्हें कोई नही हटा सकता। पहले तो कुदरत उनको साला साल हटाती हैं जैसे इन बस्तियों में बाढ़ के कारण उत्तराखंड और हिमाचल में जगह जगह जान माल का नुकसान देखा गया है और क्योंकि यह बस्तियां बस्ती ही नदियों, नाले खालो के प्राकृतिक बहाओ को संकरा करके तो इनमे बाढ़ भी प्राकृतिक रूप में आती हैं और फिर चलता है सरकारी बुलडोजर। कभी इनको आपदाओं से बचाने के लिए और कभी बस्तियों को हटाने के लिए।

टाउन प्लानिंग विभाग ने 2041 का मास्टर प्लान तैयार किया है जिसमे देहरादून को मलिन बस्तियों से मुक्त करने का प्रावधान किया गया है इससे सरकार की मंशा भी साफ हो जाती हैं कि आने वाले समय में देहरादून या उत्तराखंड की यह बस्तियां या तो विस्थापित कर दी जाएंगी या हटा दी जाएंगी। नियमतीकरण का मामला थोड़ा पैचीदा लगता हैं इसके कई कारण नजर आते हैं। एक तो सरकार दावा कर रही हैं कि उत्तराखंड में बाहर के लोगों की आबादी की वजह से डेमोग्राफी चेंज हो गई है। दूसरा कारण सरकार का यह कहना कि उत्तराखंड में जनसंख्या असंतुलन बढ़ रहा हैं। तीसरा कारण इन बस्तियों में वोटों का ध्रुवीकरण। चौथा कारण न्यायालय का इस तरह की बस्तियों को हटाने का आदेश। और इस सबके लिऐ यह मलिन बस्तियों की आबादी ही सॉफ्ट टारगेट बन जाती हैं क्योंकि इनकी बुनियाद ही नही होती और इनको हटाने के आदेश पहले से ही न्यायालय द्वारा किया होते हैं।

इन सब हालात के दृष्टिगत इन बस्ती वासियों को अपनी ज़मीनी वास्तविकता को समझना चाहिए और समय रहते अपने जन प्रतिनिधियों के माध्यम से संबंधित विभागों में अपनी बस्तियों को नियमतीकरण कराने हेतु जद्दोजेहद करनी चाहिए ताकि सरकार दिल्ली सरकार की तरह इन मलिन बस्तियों के नियमतीकरण का फैसला बस्ती वासियों के हक में कर सके। नही तो यह तलवार आज भी आपके सरों पर लटकी है और कल भी।

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