लीबिया में सुर्ख तूफान ! ले ली हजारों लोगों की जान……

सुर्ख तूफान या खूनी तूफान जिसने लीबिया में हजारों लोगों की जान ले ली हाल की बदतरीन त्रासदी में से एक है। हवा के बवंडर का यह आलम कि जैसे बड़ी बड़ी आसमान को छूने वाली इमारतें जड़ से उखड़ जाएगी, कारे मानो तिनके की तरह बह रही हो ऊंची ऊंची सैलाब की लहरे बस जैसे जल थल एक हो कुछ दिन पहले यही हाल चाइना वा अल जज़ाईर में देखने को मिला। अमेरिका, कनाडा ने जंगल की आग का तांडव कि गांव के गांव खाली हो गए या जल गए, मोरोक्को में भूकंप आया तो बस्ती की बस्ती का वजूद ही मिट गया हजारों लोगों इस दुनिया से चल बसे दुनिया की बड़ी ताकते बेबस कुदरत के कहर के सामने बस लाचार। ग्लोबल वार्मिग के अलावा भी इसके कई कारण हो सकते हैं और हम यह भी कह रहे हैं कि हमने जो पर्यावरण के साथ ज्यादती की है यह सब उसका नतीजा है यानी मानव त्रासदी मानव द्वारा उत्पन की गई है। मगर यह एक हक़ीक़त है कि मानव जाति की बरबादी उसकी अपने खालिक से बगावत का नतीजा है और इतिहास गवाह है कि पिछली कौमें इसी वजह से तबाह बर्बाद कर दी गई की उन्होने सरकशी की।
यह सुर्ख आंधी, सुर्ख तूफान क्यामत की निशानियों में से एक है और हो भी क्यों ना। अरब की सरजमीं पर बिन सलमान के फहाशी के प्रोजेक्ट नियोन सिटी टूरिज्म के नाम पर एक फहाशी का अड्डा बनने जा रहा है अगर सरज़मीन अरब में यह सब कुछ होता है तो अरबों की हिलाकत भी तय है अगर सरजमीं अरब सोना उगल रही है तो यह मेरे नबी का करम।अरब के पहाड़ तो आपके इशारे पर सोने चांदी के हो जाते दुनिया की सारी दौलत अरब में इक्कठी हो जाती मगर मेरे नबी को इस्लाम की बालादस्ती और अपने लिए फक्रो फाका मंजूर था। दोनो जहां की बादशाहत के बावजूद वही छोटा सा घर जिसमे अगले वक्त चिराग जलाने के लिए तेल भी नही था। आज सरजमीं अरब में तेल की नदिया बह रही हैं तरक्की ऐसी कि सारी दुनिया रश्क करे मगर बातिल निजाम से पूरी यक्सनियत कर मेरे प्यारे आका के निजाम को तार तार करने वाले बादशाह। यह फहश समाज दुनिया में इल्लुमिनाटी का हिस्सा हो सकता है मगर इस्लाम का नही क्या यह हकीकत बिन सलमान वा उलैमा सऊदी को को नजर नहीं आती की इस तरह के प्रोजेक्ट यह तरक्की नहीं बल्कि बरबादी के बीज बोए जा रहे हैं प्यारे नबी के दीन के खिलाफ है यह एहसास नहीं होता जो तुम बेफिक्र होकर यह सब कर रहे हैं और अपने को अरबी बालातरी में तौल रहे हो। यह बहुत जल्द खत्म होने वाली है।
“कुव्वत फिकर अमल पहले फना होती हैं।
फिर कहीं उस कौम की शौकत पे जवाल आता है।”
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून।