छत्तीसगढ़ शासन शिक्षा विभाग द्वारा युक्तियुक्तकरण नीति शिक्षा गुणवत्ता में सुधार की दृष्टि से उत्कृष्ठ कदम है, यह बात अशासकीय विद्यालय प्रबंधक कल्याण संघ के प्रदेश अध्यक्ष एवं उच्च न्यायालय अधिवक्ता चितरंजय सिंह पटेल ने कहते हुए बताया कि मौजूदा समय में विद्यालयों की व्यवस्था में शैक्षणिक असंतुलन से शिक्षा गुणवत्ता पूर्णतः दुष्प्रभावित है जिससे पालकों का रुझान स्वाभाविक रूप से शासकीय विद्यालयों से परे अशासकीय विद्यालयों की ओर बढ़ गया और शासकीय विद्यालयों की दर्ज संख्या बुरी तरह प्रभावित होकर न्यूनतम से न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई क्योंकि शासकीय ग्रामीण स्कूलों में शिक्षक जाने से कतराने लगे तो वहीं शहरी विद्यालयों में पोस्टिंग पाने शिक्षक लालायित नजर आए जिससे समुचित शिक्षा के अभाव में स्वाभाविक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के शासकीय विद्यालयों में दर्ज संख्या, शिक्षक एवं शिक्षा गुणवत्ता के अभाव में कम होकर शासकीय विद्यालय लगभग विद्यार्थी विहीन होना शुरू हो गए जबकि शहरी क्षेत्रों में पूर्व से ही अशासकीय विद्यालयों में अधोसंरचना और शैक्षिक वातावरण बेहतर और आकर्षक होने से शासकीय विद्यालयों में विद्यार्थी संख्या कम होते चली गई तो वहीं विद्यार्थियों की दर्ज संख्या के तुलना में पदस्थ शिक्षकों की संख्या अधिक होने से शैक्षणिक संतुलन बद से बदतर होती चली गई । इसके अलावा विडंबना यह कि शासकीय शिक्षक भी अपने बच्चों को अशासकीय विद्यालय में मोटी फीस अदा कर पढ़ाने में गर्वित होने लगे और शासकीय विद्यालयों में शिक्षा रूपी दीवार को दीमक की तरह कमजोर करते चले गए और प्रदेश में शासकीय विद्यालयों का शैक्षणिक स्तर सर्वथा योग्य और बेहतर, प्रतिभावान शिक्षकों के बावजूद शर्मनाक स्थिति में पहुंच गया जिसकी भनक सरकार को नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के दरमियान जमीनी साक्षात्कार से हुआ, तब यह लाजिमी है कि देश के भविष्य को संवारने के लिए बने शिक्षा के मंदिरों की भयानक दुर्दशा को ठीक करने हेतु समुचित और सार्थक पहल हो। चूंकि इस प्रदेश में शिक्षा को लेकर अलग अलग सरकारों द्वारा सर्वाधिक बार प्रयोग होते रहे हैं जिसका परिणाम कमोबेश सिफर ही रहा है, परन्तु आज युक्तियुक्तकरण नीति के तहत विद्यार्थी संख्या अनुपात में शिक्षक व्यवस्था व विद्यालय प्रबंधन से निश्चित रूप से शिक्षा गुणवत्ता में सुधार के साथ नई शिक्षा नीति में अभिभावकों की सक्रिय सहभागिता के साथ स्वस्थ शैक्षणिक वातावरण में एक नए भविष्य निर्माण केंद्र के रूप में शासकीय विद्यालय भी नया इतिहास रचेंगे।
इस देश में लोग हर बात पर राजनीति करने लगे हैं जो कदापि उचित नहीं है खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर राजनीतिक चश्मे से देखना और बोलना स्वस्थ समाज के निर्माण में हमेशा बाधा बनी है क्योंकि व्यक्ति के तन (स्वास्थ्य) और मन (मस्तिष्क) के साथ खिलवाड़ देश की नींव को कमजोर करता है इसलिए इन विषयों में राजनीति करना राष्ट्रीय विकास में बाधक होने के साथ ही राष्ट्रद्रोह ही है क्योंकि आज भी अंग्रेजों और मुगलों के द्वारा भारत देश की संस्कृति और परंपरा को पहुंचाए गए क्षति से हम पीड़ित हैं । कारण यह है कि हमारे तथाकथित वामपंथियों ने तथाकथित पठन सामग्री से देश पर बलिदान होने वाले शिवाजी और महाराणा प्रताप को आक्रमणकारी और आतताई और आक्रमणकारी अकबर को महान बताते हुए भावी पीढ़ी को बरगलाने का ही प्रयास किया है।
अब वक्त आ गया है कि राजनीतिक मतभेदों से परे नई शिक्षा नीति के माध्यम से देश के अस्मिता व मान बिंदुओं से नई पीढ़ी को साक्षात्कार कराएं और भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में पुनर्स्थापित करने में अपना योगदान सुनिश्चित करें।
संवाददाता जीके कुर्रे जिला सक्ति cg