राम प्राण प्रतिष्ठा या कुछ और! भारत का एक वर्ग कर रहा….

यह कैसा राम की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान जिसमे भारत का एक वर्ग असहज महसूस कर रहा है और हो भी क्यों न राम जी की आस्था के नाम पर अजीब सा माहौल बनाया जा रहा है राम जी की आराधना तो भारत वर्ष में हिंदू समाज सदियों से कर रहा है । जो सदियों से प्राण प्रतिष्ठा कायम की गई थी क्या वोह प्राण प्रतिष्ठा आज की प्राण प्रतिष्ठा से कुछ भिन्न थी इसमें नया अब क्या है बस इतना ही तो हैं कि लोकतांत्रिक भारत में एक वर्ग हर क्षेत्र में अपने वर्चस्व की नुमाइश कर रहा हैं यह कोशिश लगातार जारी है ।

पहले चरण में बाबरी मस्जिद पर अपना दावा ठोका गया फिर मस्जिद को तोड़ा गया फिर अदालत ने यह तर्क स्वीकार करने के पश्चात् भी कि बाबरी मस्जिद को किसी मंदिर को तोड़ कर नही बनाया गया आस्था की बुनियाद पर बाबरी मस्जिद की ज़मीन हिंदू पक्ष को दे दी गई उस पर प्राण प्रतिष्ठा कर भव्य राम मंदिर का निमार्ण किया गया मगर यह बात तो साफ तौर से सिद्ध हुई कि मंदिर को तोड़ कर उसके के ऊपर मस्जिद नही बनाई गई थी। यह तथ्य इतिहास के पन्नो में दर्ज होकर इंसाफ की तराज़ू को हिला रहा है अब इस से आगे कमाल का प्रदर्शन सब पुरानी मर्यादाओं पर इस नए राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कर सब पर राजनीतिक जीत हासिल की जा रही है। जबकि राम जी तो हिंदुओ के आराध्य सदियों से है इस भव्य समारोह को करने पर लिए चारो मठों के शंकराचार्य वा विपक्षी दल और समाज के कई वर्गअसहमत क्यों हो रहे है एक अजीब से बात है क्या राजनीतिक महत्वकांशा ने धार्मिक मर्यादाओं को भी अपने कब्जे में लेकर उसका भी महत्व हड़ लिया है और इसी आपा धापी से समाज में एक असुरक्षा की भावना उत्पन हो गई है ।

जहां तक मुसलमानों की बात है वोह तो एक अल्लाह की इबादत करने वाला वर्ग है और उसी को अपना मालिक और खालिक मानता है जिंदगी और मौत उसी के इख्तियार में है। यह वर्ग हमेशा कोशिश करता है कि उनकी वजह से मुल्क की शांति वा सदभाव पर कोई असर न पड़े इसलिए इन सब हालात में सब्र शुक्र से हालात से समझौता करता है ताकि उनकी वजह से किसी को तकलीफ न पहुंचे मगर यह बात स्पष्ट है कि वो अल्लाह के सिवा किसी को अपना कारसाज नही समझता है और अगर इसके विपरीत है तो इस्लाम से ला ताल्लुक है। यही इस्लाम की तालीमात हैं और यही ईमान है। 1991 के पूजा स्थल कानून के अनुसार बाबरी मस्जिद से अलावा सारी मस्जिद कानूनी एतबार से संरक्षित है मगर इसके बाद भी और दूसरी मस्जिदों पर दावे करके माहौल में कशीदगी पैदा कर दी गई है यह मुस्लिम वर्ग को हाशिए पर लाने, मुकद्दमात में उलझने और दबाने की कोशिश इस तरह की जा रही है जैसे भारत के मुसलमान इस मुल्क के नागरिक ही न हो और इनके कोई अधिकार ही न हो । यह वक्त सही मायनों में मुसलमानों की आजमाईश का वक्त है कि हम इन सब हालात में कितने साबित क़दम रहते हैं और अपने ईमान की कितनी हिफाज़त करते हैं यह हमें फिलस्तीन के मुसलमानों से सीखना चाहिए।

मौजूदा हालात में दुनिया ताकतवर के साथ खड़ी होती हैं मगर रब्ब की ताकत हमेशा कमजोरो और ईमान वालो के साथ होती हैं। इस यकीन के साथ कामयाबी निश्चित हैं।

आपका,
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीती एंक्लेव, माजरा, देहरादून

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