असद का एनकाउंटर पर उठ रहे सवाल !आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी !क्या कहता है कानून क्या है गाइडलाइन जाने……

उमेश पाल हत्याकांड में एक ओर माफिया डॉन अतीक अहमद की अदालत में पेशी हुई तो दूसरी ओर झांसी में उनके बेटे असद का एनकाउंटर हो गया. असद के साथ ही शूटर गुलाम को भी यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया.

यूपी एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश ने बताया कि असद और गुलाम को पुलिस जिंदा पकड़ना चाहती थी, लेकिन उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी. इसके बाद जवाब में पुलिस को भी गोली चलानी पड़ी.

हालांकि, जब भी ऐसे एनकाउंटर होते हैं तो इन पर सवाल भी खड़े होते हैं. पुलिस दावा करती है कि उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई. आईपीसी की धारा 96 से 106 में उन परिस्थितियों के बारे में बताया गया है जब एनकाउंटर में हुई मौत को अपराध नहीं माना जाता है

एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले

  • 2011 में प्रकाश कदम बनाम रामप्रसाद विश्वनाथ गुप्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, फेक एनकाउंटर और कुछ नहीं, बल्कि मर्डर है और जो भी ऐसा करता है उसे सजा-ए-मौत दी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे मामलों को ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ माना जाना चाहिए. अदालत ने उस समय टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘एनकाउंटर के नाम पर लोगों को मारकर बच निकलने की सोचने वाले पुलिसवालों को पता होना चाहिए कि फांसी का फंदा उनका इंतजार कर रहा है.’
  • 2012 में ओम प्रकाश बनाम झारखंड सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक्स्ट्राज्यूडिशियल किलिंग कानूनी नहीं है और इसे स्टेट-स्पॉन्सर्ड टेररिज्म के बराबर माना जाना चाहिए. आरोपी पर मुकदमा चलना चाहिए, क्योंकि पुलिस का कर्तव्य किसी को मारना नहीं बल्कि गिरफ्तार करना है.
  • 2014 में पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस एनकाउंटर में होने वाली मौतों को लेकर बकायदा गाइडलाइन जारी की थी.

एनकाउंटर पर क्या है SC की गाइडलाइंस?

  1. आपराधिक गतिविधियों के बारे में किसी भी इंटेलिजेंस या टिप-ऑफ को केस डायरी या किसी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में दर्ज किया जाना चाहिए.
  2. अगर एनकाउंटर में कोई मौत होती है तो उसकी एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.
  3. किसी दूसरे पुलिस थाने की पुलिस टीम या सीआईडी टीम की ओर से इस एनकाउंटर डेथ की स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए.
  • मौत से जुड़ी चीजें, खून से सनी मिट्टी, बाल, रेशों और धागों समेत सबूत से जुड़ी सारी चीजों को रिकवर और प्रिजर्व रखा जाए.
  • चश्मदीदों की पहचान कर उनके बयान दर्ज किए जाएं.
  • मौत का समय, कारण, लोकेशन और तरीकों को दर्ज किया जाए.
  • एनकाउंटर में मारे गए व्यक्ति के फिंगरप्रिंट को केमिकल एनालिसिस के लिए भेजा जाना चाहिए.
  • जिला अस्पताल के दो डॉक्टर पोस्टमॉर्टम करेंगे और इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी.
  • गनशॉट और मेटल डिटेक्शन को ट्रेस करने के लिए टेस्ट किए जाने चाहिए.
  1. पुलिस फायरिंग में होने वाली सभी मौतों के मामलों में सीआरपीसी की धारा 176 के तहत मजिस्ट्रियल जांच की जानी चाहिए.
  2. ऐसे मामलों की सूचना तुरंत राष्ट्रीय या राज्य मानवाधिकार आयोग को दी जानी चाहिए.
  3. एनकाउंटर के दौरान घायल हुए अपराधी या पीड़ित को मेडिकल सहायता दी जानी चाहिए और मजिस्ट्रेट या मेडिकल ऑफिसर के सामने उसका बयान दर्ज किया जाना चाहिए.
  4. संबंधित अदालत को एफआईआर, डायरी एंट्री, पंचनाम, स्केच वगैरह भेजने में देरी नहीं की जानी चाहिए.
  5. धारा 173 के तहत जांच रिपोर्ट संबंधित अदालत को भेजी जानी चाहिए.
  6. एनकाउंटर में किसी की मौत होती है तो उसके परिजनों को तुरंत इसकी जानकारी दी जानी चाहिए.
  7. पुलिस फायरिंग में होने वाली मौतों का ब्योरा हर 6 महीने में डीजीपी की ओर से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजा जाना चाहिए.
  8. एनकाउंटर में मौत होने के मामले में संबंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ तुरंत डिसिप्लीनरी एक्शन लिया जाना चाहिए और उन्हें सस्पेंड कर देना चाहिए.
  9. मौत होने पर पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया जाना चाहिए.
  10. एनकाउंटर के पुलिसकर्मियों को अपने हथियार फोरेंसिक और बैलेस्टिक एनालिसिस के लिए सरेंडर करना चाहिए.
  11. घटना के बारे में जानकारी पुलिस अधिकारी के परिवार को भी दी जानी चाहिए और उसे वकील की पेशकश की जानी चाहिए.
  12. घटना के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों को न तो कोई प्रमोशन दिया जाएगा और न ही किसी वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.
  13. अगर पीड़ित परिवार को लगता है कि प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है तो वो सेशन जज के सामने शिकायत कर सकता है.

मानवाधिकार आयोग की क्या है गाइडलाइंस?

  • एनकाउंटर में मौत होने का पता चलते ही पुलिस स्टेशन के इनचार्ज को इसकी जानकारी दर्ज करनी चाहिए.
  • अपराधी या आरोपी की मौत होने पर फैक्ट्स और परिस्थितियों की तत्काल जांच की जानी चाहिए.
  • चूंकि पुलिस खुद इसमें शामिल है, इसलिए इसकी जांच सीआईडी जैसी किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंपी जानी चाहिए.
  • चार महीने के अंदर जांच पूरी होनी चाहिए. अगर जांच का नतीजा प्रॉसिक्यूशन के पक्ष में होता है तो जल्द से जल्द ट्रायल पूरा करना चाहिए.
  • मामले का निपटारा होने के बाद पीड़ित परिवार को मुआवजा देने पर भी विचार किया जा सकता है.
  • एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.
  • पुलिस कार्रवाई में हुई सभी मौतों की मजिस्ट्रियल जांच तीन महीने के भीतर पूरी की जानी चाहिए.
  • एनकाउंटर होने वाली मौत की सूचना 48 घंटे के अंदर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दी जानी चाहिए.
  • पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, मजिस्ट्रियल जांच के नतीजे और सीनियर पुलिस अफसरों से पूछताछ की रिपोर्ट तीन महीने के भीतर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दी जानी चाहिए.
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