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धार्मिक संस्थाओं का संरक्षण हम सब की जिम्मेदारी…..

दिल्ली में बवाना और मंगोलपुरी मस्जिदों को इस आधार पर तोड़ दिया गया कि वे एमसीडी की जमीन पर बनी थीं. सराय काले खां स्थित वक्फ बोर्ड में पंजीकरण के बावजूद डीडीए के जरिए फैजयाब मस्जिद और मदरसे को हटाने की तैयारी की जा रही है, जिसके लिए हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि 11 जुलाई 2024 तक मस्जिद मदरसे को खाली कर दिया जाए इन सब हालात में यहां यह बात विचार करने योग्य है कि हमारी मस्जिदें, मदरसे और धार्मिक संस्थान क्यों टूट रहे हैं। क्या हम अदालतों में यह साबित नहीं कर पाए हैं कि इन धार्मिक संस्थानों के हम मालिक वा काबिज हैं या वक्फ बोर्ड और अन्य धार्मिक संगठन अदालतों में इन मुकदमों के सही तथ्य वा पैरवी नहीं कर रहे हैं। कितनी बार पहले भी यह हो चुका है और अब भी हमारे विरुद्ध ही फैसले आते हैं । नतीजतन फिर हमारी आंखों के सामने हमारी धार्मिक अखंडता को पैरों तले कुचल दिया जाता है और हम तमाशबीन, बे यारों मददगार बनकर इधर-उधर मारे-मारे फिरते हैं। क्या इस सब पर हमे महासबा करने और कोई प्रभावी हिफाजती हिक्मत अमली तैयार करने की जरूरत है।

पहली बात यह है कि हम अपने धार्मिक केंद्रों, मस्जिदों, मदरसों के स्वामित्व के पूरे दस्तावेज तैयार करें, यदि किसी कारण से वे पूरे नहीं हैं, और कोई अनियमिता है तो उन्हें सही ढंग और कानूनी रूप से दूर कर दस्तावेज तैयार करें। अगर कोई संपति हमारी आधिकारिक संपति से ज्यादा है तो उसे हमें स्वयं त्याग देना चाहिए क्योंकि हमारे पास स्वामित्व का कोई शरीयत का अधिकार नहीं है। बल्कि ऐसी संपत्ति हमारे लिए पाप का स्रोत है, जिससे बचना चाहिए।

मुस्लिम समाज हर साल इन धार्मिक संस्थाओं को अरबों रुपए दान में देता है जिस से यह सभी धार्मिक संस्थाएं बनती भी है और चलती हैं, क्या इन धार्मिक संस्थाओं के जिम्मेदार व्यक्ति इन संस्थाओं के स्वामित्व को कानूनी रूप से सही नहीं कर सकते जबकि उसका खर्च मुस्लिम समाज उठाता है यदि वे ऐसा नहीं कर सकते, तो वे स्वयं धर्म के इन किलो को ध्वस्त करने के लिए जिम्मेदार हैं। हमारे लिए हमारी शरीयत सबसे पहले होनी चाहिए। यदि किसी संस्था के पास उसके वास्तविक स्वामित्व से अधिक सरकारी और गैर-सरकारी जमीन है, तो या तो उसे मालिक से खरीद लें या सरकार से उसके दस्तावेज सही करा लें और यदि यह संभव नहीं है, तो फिर उसे से दस्त बरदार हो जाए। इस गैर-शरीयत स्वामित्व का अधिकार छोड़ कर कम से कम हम इस अवैध कृत्य से इस्लाम का उपहास का पात्र ना बने। अल्लाह हम सबको सही समझ दे आमीन

खुर्शीद अहमद
(महासचिव जमीयत उलेमा हिंद देहरादून), 37 प्रिटी एन्क्लेव माजरा देहरादून

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