जोशीमठ में लोगों का विरोध जारी धरना भी लगातार आज से बुलडोजर कार्रवाई होगी शुरू! मुआवजा भी 1.3 लाख……

प्रशासन की लापरवाही….सरकारों की लेट लतीफी और प्रकृति को नुकसान पहुंचा विकास करने वाली प्रवति, ये वो तीन विलेन हैं जिसने जोशीमठ को संकट में ला दिया है. ऐसे संकट में कि हजारों लोगों के आशियाने टूटने की कगार पर खड़े हैं, जहां कई परिवार विस्थापित होने वाले हैं. अब यहां पर लोगों को दर्द है, पीड़ा है, सपनों का आशियाना खोने का डर है, लेकिन प्रशासन ने इसकी कीमत निकाल दी है- 1.3 लाख रुपये, गलती किसी की, लापरवाही किसी की, लेकिन 1.3 लाख रुपये में सात खून माफ वाली बात है. अब एक तरफ मुआवजे का ऐलान हुआ है तो दूसरी तरफ जोशीमठ की आज अग्नि परीक्षा है. आज बुलडोजर के जरिए कई मकानों को, होटलों को गिराया जाएगा.

प्रशासन के इंतजाम, लोगों के टूटते सपने

अब तक की प्रशासन की कार्रवाई के बाद जोशीमठ में 723 मकानों में दरारें पाई गई हैं. सुरक्षा को देखते हुए यहां 131 परिवारों को अस्थाई रूप से विस्थापित किया गया है. 10 उन परिवारों को जिनके आशियाने पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं, उन्हें 1.30 लाख की दर से धनराशि वितरित की गई है. इसके साथ ही प्रभावित परिवारों को उनकी आवश्यकतानुसार खाधान्न किट और कंबल वितरित किये गये हैं, कुल 70 खाद्यान्न किट, 70 कम्बल और 570 ली. दूध प्रभावितों को वितरित किया गया है, कुल 80 प्रभावित व्यक्तियों का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया गया है. लेकिन इन दावों और इंतजामों के बीच लोगों का विरोध भी शुरू हो चुका है. किसी की जिंदगीभर की कमाई का जो 1.3 लाख रुपये का मुआवजा निकाला गया है, लोगों को ये रास नहीं आ रहा है. कई महिलाएं सड़कों पर बैठी हुई हैं. लोगों की मांग है कि होटल तभी गिराने दिया जाएगा जब उन्हें उचित मुआवजा मिल जाएगा.

सवाल ये है कि जोशीमठ को इस हालत में कैसे लाया गया है, गिराने की जितनी जल्दी है, क्या बनाते समय इतना दिमाग खपाया गया? गुलाल फिल्म का एक डायलॉग है- मुल्क़ ने हर शख़्स को जो काम था सौंपा, उस शख़्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी. इसे याद करते हुए गौर करिए…हलद्वानी में बनभूलपुरा की बस्ती पहले दशकों तक बसने दी जाती है, फिर अचानक एक दिन अतिक्रमण बताकर हटाने का एलान होता है. बुलडोजर चलाने की होती है. याद करिए दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोजर पिछले साल चला. नोएडा में भ्रष्टाचार का ट्विन टावर पहले खड़ा होता रहा, बाद में कोर्ट के आदेश पर गिराया गया. इन सारी घटनाओं में गिराने तो प्रशासन चल देता है लेकिन ये नहीं सोचा जाता कि खड़ा किसने होने दिया ? वो कभी सजा नहीं पाता.

क्या बीजेपी क्या कांग्रेस, जब पर जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट तक जब मामला पहुंचा तो देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई संस्थाएं हैं, जो ऐसे मामलों का निपटारा कर सकती हैं. सवाल यही तो है कि क्या संस्थाओं ने जोशीमठ में अपनी जिम्मेदारी निभाई ? बड़ी बात ये है कि जोशीमठ की हालत के लिए कोई एक पार्टी जिम्मेदार नहीं है. उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जिसने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को समान अवसर दिए हैं. इतना मौका तो दे ही दिया है कि वर्तमान स्थिति के बाद कोई भी पार्टी एक दूसरे पर आरोप नहीं मढ़ सकती है.

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