कुम्हारों का कहना है कि लोगों को चाहिए कि वे त्योहारों को परंपरागत ढंग से मनाएं और मिट्टी के दीयों की खरीदारी में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें। इससे पारंपरिक कला को भी बढ़ावा मिलेगा।
रिपोर्ट – चंद्रकिशोर पासवान
नावकोठी (बेगूसराय) : दीपावली और महापर्व छठ के अवसर पर मिट्टी के दीयों की मांग में तेजी आई है। सभी पंचायतों में कुम्हारों द्वारा दीयों, चौमुखों, कूपों, मिट्टी के गुल्लकों और बच्चों के खिलौने बनाने का कार्य जोरों पर है। दीपावली को रोशनी और दीपों का त्योहार माना जाता है, और इस अवसर पर घरों को दीयों से सजाना एक परंपरा है।कुम्हारों के अनुसार, दिवाली के करीब आते ही दीयों की मांग बढ़ जाती है। लोग विशेष रूप से मिट्टी के दीयों को तरजीह दे रहे हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब। इस अवसर पर, कार्तिक मास की अमावस्या की रात हर घर दीयों से रोशन होता है। खासकर धर्मावलंबी महिलाएं पूरे महीने तुलसी और अक्षयवट वृक्ष के नीचे घी के दीए जलाती हैं नावकोठी प्रखंड के कुछ कुम्हार इस परंपरागत काम को संभाल रहे हैं। हालांकि, वयोवृद्ध रामआशीष पंडित ने चिंता जताई कि अब उनके परिवार के युवा इस काम में रुचि नहीं ले रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि इस काम से घर चलाना मुश्किल हो गया है।हालांकि, कई कुम्हार अब भी मिट्टी के दीयों के बाजार को गुलजार करने की उम्मीद रखते हैं। बाजार में चाइनीज उत्पादों की बढ़ती संख्या के बावजूद, लोग पारंपरिक मिट्टी के दीयों की ओर लौट रहे हैं। विशेषकर ग्रामीण इलाकों में, मिट्टी के दीयों का उपयोग अभी भी सामान्य हैकुम्हारों का कहना है कि लोगों को चाहिए कि वे त्योहारों को परंपरागत ढंग से मनाएं और मिट्टी के दीयों की खरीदारी में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें। इससे न केवल कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, बल्कि पारंपरिक कला को भी बढ़ावा मिलेगा।दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा, और लोग अपने घरों को सजाने की तैयारी कर रहे हैं। कुम्हारों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले समय में बाजार में रौनक लौट आएगी।हालांकि, कुछ कुम्हार इस कठिनाई का सामना कर रहे हैं और उचित दाम न मिलने के कारण अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। फिर भी, कुछ ऐसे ग्राहक हैं जो मिट्टी के बर्तनों की विशेषता को पसंद करते हैं, जैसे चाय की कुल्हड़, गुल्लक और मिट्टी की मूर्तियां।इस स्थिति को देखते हुए, समाज को चाहिए कि वह मिट्टी के बर्तनों की खरीदारी को प्रोत्साहित करे, ताकि कुम्हारों का यह प्राचीन और मूल्यवान कला बची रहे।