सबीह खान: अब्दुल पंचर नहीं बनाता, अब Apple भी चलाता है — भारतीय मुसलमान के लिए गर्व की ऐतिहासिक घड़ी…
डॉ. इफ्तखार त्यागी ….
टेक्नोलॉजी की दुनिया में भारतीयों का डंका बज रहा है, और अब एक नया नाम इस सूची में शान से जुड़ गया है — सबीह खान, भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक, जो जल्द ही दुनिया की सबसे मूल्यवान टेक कंपनी Apple के COO (Chief Operating Officer) बनने जा रहे हैं। यह केवल एक पद नहीं है, बल्कि यह उस समाज, उस सोच, और उन युवाओं के सपनों की जीत है जिन्हें आज भी “अब्दुल पंचर बनाता है” जैसे तानों का सामना करना पड़ता है।
मुरादाबाद से क्यूपरटिनो तक का सफर
सबीह खान का जन्म 1966 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में हुआ था। एक छोटे शहर से निकलकर अमेरिका पहुंचना और वहां दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक Apple के शीर्ष प्रबंधन में शामिल होना, अपने आप में किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। यह दिखाता है कि अगर मेहनत और काबिलियत हो, तो सीमाएं और सरहदें मायने नहीं रखतीं।
तीन दशक से Apple की रीढ़ बने सबीह
सबीह खान 1995 में Apple से जुड़े और पिछले 30 वर्षों से कंपनी के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं। शुरुआत में वह खरीद विभाग से जुड़े, लेकिन अपनी लगन, समर्पण और रणनीतिक कौशल के बल पर वह आज कंपनी के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट ऑफ ऑपरेशन्स के पद तक पहुंचे और अब COO की ज़िम्मेदारी संभालने जा रहे हैं।
Apple के अनुसार, खान ने iPhone, iPad, MacBook, AirPods, और अन्य प्रमुख उत्पादों की सप्लाई चेन और डिलीवरी सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे एप्पल सीरीज के सेंट्रल आर्किटेक्ट माने जाते हैं।
मुस्लिम समाज के लिए उम्मीद की नई रोशनी
भारत में अक्सर मुस्लिम समुदाय को शिक्षा और तकनीकी क्षेत्र में पीछे समझा जाता है। यहाँ तक कहा जाता हे कि ” अब्दुल तो पंचर बनाता है” जैसी अपमानजनक कहावतें भी सुनने को मिलती हैं। लेकिन सबीह खान की यह उपलब्धि इस मानसिकता को जमीन में दफन कर देती है।
यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे भारतीय मुसलमान समाज की जीत है। यह साबित करता है कि मुसलमान बच्चे भी Apple जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों के सबसे ऊंचे पदों तक पहुंच सकते हैं, बशर्ते उन्हें शिक्षा और अवसर मिले।
टिम कुक की भी सराहना
Apple के CEO टिम कुक ने भी सबीह खान की तारीफ करते हुए कहा कि कंपनी की सफलता में खान का योगदान अमूल्य रहा है। उन्होंने कहा कि “सबीह ने Apple को जिस स्तर पर ऑपरेशनल रूप से पहुंचाया है, वह बेमिसाल है।” यह सराहना एक बड़े पद की औपचारिकता से कहीं आगे जाकर उनकी प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देती है।
नया भारत, नई पहचान
सबीह खान की सफलता भारत के हर नागरिक और और शिक्षा क्षेत्र में पिछड़े मुस्लिम युवा के लिए एक संदेश है — “हां, तुम कर सकते हो!” यह सिर्फ एप्पल के पद की बात नहीं है, यह उस सामाजिक सोच को तोड़ने की बात है जो यह मानती है कि कुछ समुदाय केवल सीमित कार्यों तक ही रह सकते हैं।
आज का अब्दुल पंचर नहीं बनाता, वह दुनिया की सबसे इनोवेटिव कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट, आर्किटेक्ट और अब COO भी बनता है।
सपनों की कोई जात नहीं होती
सबीह खान की कहानी हमें यह सिखाती है कि मेहनत और ईमानदारी से किया गया काम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। भारत और भारतीय मुसलमानों को इस पर गर्व करना चाहिए और इस अवसर को प्रेरणा के रूप में लेना चाहिए।
अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को केवल डॉक्टर, इंजीनियर या दुकान चलाने तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें यह बताएं कि तुम भी Apple चला सकते हो, तुम भी दुनिया बदल सकते हो।