सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों (बिलों) पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समय-सीमा निर्धारित की गई है। यह पहली बार है जब सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन के लिए एक स्पष्ट समयसीमा तय की है।
इस फैसले की पृष्ठभूमि:
- यह मामला पंजाब सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका से जुड़ा है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राज्यपाल राज्य सरकार द्वारा पास किए गए बिलों को राष्ट्रपति को नहीं भेज रहे थे या जानबूझकर देरी कर रहे थे।
- इस संदर्भ में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधायिका के निर्णयों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रखना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
- राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए किसी भी बिल पर निर्णय लेने के लिए अधिकतम तीन महीने का समय मिलेगा।
- यह निर्णय राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 200 और 201 के तहत बिलों पर सहमति, असहमति या पुनर्विचार के लिए वापसी के संदर्भ में लिया गया है।
इसका महत्व:
- यह फैसला संघीय ढांचे में राज्यों के अधिकारों को और अधिक मजबूती देता है।
- विधायी प्रक्रिया में अनावश्यक देरी को रोकने में मदद करेगा।
- कार्यपालिका को संवैधानिक उत्तरदायित्वों को समय पर निभाने की ओर प्रेरित करेगा।