तारीखी ऐतबार से नए साल की शुरुआत मेसोपोटामिया में वर्ष 2000 ईसा पूर्व हुई। बेबीलोनिया में साल की शुरुआत बसंत ऋतु के चांद से होती थी परंतु असीरिया में पतझड़ यानी आटम के पहले चांद से होती थी। हर जगह पर नई साल का अलग महत्व था पर ज्यादातर लोग इसको अपनी जिंदगी की नई शुरुआत समझते थे। और चांद के निकलने से इसकी शुरुआत करते थे। ईसाइयों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ पहली जनवरी को नया साल मनाया जाने लगा और 31 दिसंबर की रात को वाच नाइट की तरह मनाया जाने लगा। मकसद तो यह था कि पिछले साल में इंसानों से जो गुनाह और गलतियां हो गई थी उस पर पशेमान होकर तौबा करे और आगे उन गलतियों को न दोहराए। मगर हर जगह शैतान अपना काम करता हैं इस पर्व को भी खुराफात का पर्व बना दिया लोग आनंदम आनंदम गाने लगे और इसमें हर तरीके का नशा परोसे जाने लगा, शराब कबाब, मौज मस्ती, डांस रॉक्स, फ़हाशी फ्लर्टिंग आम होगई और तौबा तो याद नहीं रही बल्कि नए साल में नए नए गुनाहों की शुरुआत हो गई। परन्तु कुछ लोग हैं जो अपने गुनाहों पर नादिम होकर अपने रब्ब की इबादत कर यह समझते हैं कि हमने साल की शुरुआत अच्छे कामों से की और आगे भी भलाई का काम करेंगे। मगर इस भौतिक युग में यह धारणा कम लोगों में बसी हैं।
हिन्दुओं ने नया वर्ष चैत्र शुल्क से शुरू होता है और चैत्र नवरात्रि की शुरुआत के साथ नौ दिन नवरात्रि के व्रत रखे जाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।
मुसलमानों में साल के बारह महीनों की शुरुआत माह मुहर्रम से होती है और इस महीने को हुर्रमत वाला महीना माना जाता हैं इस महीने की यौम आशुरा के अतिरिक्त बहुत ही तारीखी अहमियत है। दो दिन नौ वा दस या दस वा ग्यारह के रोज़े रखने का एहकाम है। मुसलमानों में नया साल मनाने का कोई एहकाम नहीं हैं और उनको किसी तरह का नया साल या जयंती नहीं मनानी चाहिए। बारह महीनों में चार महीनों को हुर्मत वाला महीना माना जाता हैं।
ईरान और शिया बहुल इलाकों में नौ रोज़ को नया साल मनाया जाता हैं। यहूदियों में रोश हशाना नए साल की तरह मनाया जाता है और इसमें खूब धमाके और आतिश बाजी की जाती हैं।
भारत में अक्सर प्रांतों में जैसे आसाम वगैरा में किसान अपनी फसल तैयार होने पर पहले दिन जो फसल काटते है और बिहू जैसे त्योहार से अपने नई साल की शुरुआत करते हैं।
दुनिया में सबसे पहले प्रशांत महासागर के टोंगा दीप में नया साल मनाया जाता हैं। चीन में भी नया साल पहली जनवरी से तीन जनवरी तक मनाया जाता हैं। सारी दुनिया अपने अपने तरीक़े से नए साल की मस्ती में डूब जाती है मगर इस्लाम में नए साल मनाने या जयंती मनाने का कोई तसव्वुर नहीं है बल्कि हर वक्त अपने गुनाहों पर निदामत और तौबा की तलक़ीन है इसलिए ग्रिगेरियन नए साल यानी आखिरी दिसंबर की रात की खुराफ़ात से बचना हर हाल में बेहतर है। इन प्रोग्रामों में शिरकत कर क्यों अपने हिस्से में गुनाहों का बोझ बढ़ाते हो ए नौजवानों।
खुर्शीद अहमद सिद्दिकी
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून उत्तराखंड।