नही रहे इल्मों अदब के चराग़….. मौलाना नदीम उल वाजदी ……

देवबंद
23 जुलाई 1954 को मौलाना वाजिद हुसैन रह. साबिक़ शैख़ उल हदीस के घर मे जन्मे मौलाना नदीम उल वाजदी आज शिकागो (अमेरिका )मे हमेशा के लिए इस दारे फानी से रुख़सत हो गए मौलाना ने देर रात अमेरिका के शिकागो में आखरी सांस ली,

आपके दादा हज़रत मौलाना अहमद हसन प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान थे.
1974 मे दारुल उलूम देवबंद से तालीम पूरी करने के बाद आपने अरबी भाषा के विशेष कोर्स “तकमीले अदब “मे दाखला लिया. देवबंद मे उस समय के प्रसिद्ध अरबीक विद्वान मौलाना वहीद उज़ ज़मा रह. के सम्पर्क मे अरबी भाषा पर अपनी पकड़ मज़बूत की.
दारुल उलूम से तालीम पूर्णकर एक वर्ष तक हैदराबाद के एक मदरसे मे शिक्षण सेवाएं दीं . 1978 मे दारुल उलूम मे मजलिसे शूरा के विशेष आह्वान पर सदसाला इजलास (शताब्दी समारोह )मे विशेष सेवा के लिए आमंत्रित किया गया. जहां आपने उर्दू और अरबी ज़बान मे दारुल उलूम के परिचय मे कई किताबचे लिखे. उसके बाद एक निजी अरबी ज़बान का ज्ञान देने के लिए सेंटर की स्थापना की. इस क्रम मे उन्होंने “अरबी बोलिये ” “अरबी मे ख़त लिखिए ” “अरबी मे तरजुमा कीजिये ” “मोअल्लिम उल अरबीयासहित सात पुस्तकें लिखीँ. जो आज भी अरबी पढ़ने लिखने वाले छात्रों मे प्रसिद्ध हैं और पहली ज़रूरत हैं.
1980 उन्होंने अपनी निजी प्रकाशन एवं लेखन संस्था दारुल किताबकी स्थापना की और सर्वप्रथम अरबी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक **अहया उल उलूम ** का तरजुमा किया. 1980 से आज 2024 तक उनकी प्रकाशन और लेखन संस्था देश की अग्रणी संस्था है. जहाँ उनके दुवारा लिखित और प्रकाशित असंख्य पुस्तकें हैं.
एक वक्ता और लेखक के रूप उन्होंने असंख्य लेख लिखे और सेमीनार, जलसों और कार्यकर्मों मे भाग लिया. देश के प्रसिद्ध समाचार पत्र और पत्रिकाओं **दारुल उलूम, बुरहान, नया दौर, आजकल, शायर, हुमा, अज़ायम, निदाये मिल्लत, अल्जमियत, अल रशीद (लाहौर, पाकिस्तान )क़ौमी आवाज़, दावत मे उनके लेख प्रकाशित हुए. माहे रमज़ान मे उर्दू दैनिक “इंक़लाब ” मे उनका क़ुरआन पाक के 30 पारों पर विशेष आमंत्रित लेख रोज़ आता था. उन्होंने लम्बे समय तक स्वयं के सम्पादन मे उर्दू मासिक पत्रिका **तर्जुमाने देवबंद ** का सफल प्रकाशन किया……. मगर आज 70 साल की जदो जहद (संघर्षशील )कामयाब,बेमिसाल जिंदगी गुज़ारकर वो रुखसत हो गए….. आपकी रुख़सती… सिर्फ एक इंसानी जान की रुख़सती नही…. बल्कि क़स्बा ए देवबंद के इल्मों अदब, तहरीर, तक़रीर के आख़री रोशन चराग़ की रुख़सती भी है……. उनकी वफ़ात के बाद…चारों तरफ एक अंधेरा है, एक ख़ला (शून्य)है,एक अधूरापन और मायूसी है, दिल बुझे.. बुझे और ज़ेहन फ़िक्रमनंद है ….. जिसको पूरा करना मुश्किल ही नही नामुमकिन है……**जिंदगी ऐसी जियो के दुश्मनों को रश्क हो…. मौत हो ऐसी के दुनिया देर तक मातम करे **…….. दिली दुःख, ग़म, आंसू और क़यामत तक की जुदाई के साथ….

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