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आसमान की बुलंदियों को अपनी मुट्ठी में कर लिया बलिया के पिछड़े और छोटे से गांव के रहने वाले लाल ने, रफाल उड़ाकर अंबाला पहुंचा ये लाल।

फ्रांस से 5 रफाल लड़ाकू विमान उड़ाकर भारत लाने वाले 7 जाबांज पायलट्स में से एक हैं विंग कमांडर मनीष सिंह. मनीष सिंह रफाल उड़ाकर अंबाला एयरबेस पर पहुंचे.भारतीय वायुसेना को रफाल की शक्ति मिल चुकी है. रफाल लड़ाकू विमान भारत आ चुके हैं. आपको ये तो पता है कि भारतीय वायुसेना के पायलट्स रफाल को फ्रांस से उड़कार भारत लेकर आए. लेकिन क्या आपको इन पायलट्स के बारे में पता है? रफाल को भारत लाने वाले पायलट्स में से एक हैं विंग कमांडर मनीष सिंह। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर बलिया के बेहद पिछड़े और छोटे से गांव के रहने वाले विंग कमांडर मनीष सिंह ने आसमान की बुलंदियों को अपनी मुट्ठी में कर इतिहास रच दिया. 


बच्चे अक्सर आसमान में प्लेन उड़ता देख कहते हैं. पापा मैं फाइटर पाइलट बनूंगा. आज हम ऐसे ही एक बच्चे की कहानी आपको बताने जा रहे हैं जो न सिर्फ फाइटर पायलट बना बल्कि देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया.
विंग कमांडर मनीष सिंह ने साबित कर दिया कि प्रतिभा जगह और सुविधाओं की कमी की मोहताज नहीं होती है. छोटे शहर में एक पिछड़े गांव के लड़के ने रफाल जैसे विमान को उड़ाकर कमाल कर दिया. ऐसे जाबांज वीर वायुपुत्रों को देश का सलाम. 

फ्रांस से 5 रफाल लड़ाकू विमान उड़ाकर भारत लाने वाले 7 जाबांज पायलट्स में से एक हैं विंग कमांडर मनीष सिंह. मनीष सिंह रफाल उड़ाकर अंबाला एयरबेस पर पहुंचे. अन्य बच्चों की तरह उन्होंने भी बचपन में सपना देखा था कि बड़े होकर फाइटर पायलट बनूंगा और दुश्मनों के ठिकानों को तबाह करूंगा.विंग कमांडर मनीष सिंह यूपी के छोटे से शहर बलिया में बेहद पिछड़े तहसील बांसडीह के छोटे से गांव बकवां के रहने वाले हैं. अपने परिवार में दो भाई औ दो बहनों में सबसे बड़े विंग कमांडर मनीष के गांव में खुशी का माहौल है. गांव में जश्न मनाया गया. मनीष की मां को अपने बेटे पर बेहद गर्व है.

मनीष के पिता भी सेना से रिटायर्ड हैं. मनीष की शुरुआती पढ़ाई गांव के एक निजी स्कूल में हुई. छठवीं कक्षा तक गांव में पढ़ाई करने के बाद उनकी उच्च शिक्षा करनाल में सैनिक स्कूल से हुई. वर्ष 2002 में भारतीय वायुसेना में मनीष पायलट हुए. फ्रांस से लड़ाकू विमान रफाल की डील के बाद मनीष को प्रशिक्षण के लिए सरकार ने फ्रांस भेजा था.

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