जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए राज्यसभा में नोटिस,55 सांसदों ने ….

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग को लेकर राज्यसभा में नोटिस पेश किया गया है। यह कदम उनके द्वारा हाल ही में दिए गए विवादास्पद बयानों के बाद उठाया गया है। विपक्षी दलों ने संविधान के अनुच्छेद 218 और न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत महाभियोग प्रस्ताव को लेकर राज्यसभा महासचिव से मुलाकात की और नोटिस सौंपा। सूत्रों के अनुसार, इस नोटिस पर 55 विपक्षी सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता जैसे कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह, और विवेक तन्खा, सीपीआई (एम) के जॉन ब्रटास, राजद के मनोज कुमार झा, और तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले शामिल हैं।

यह नोटिस न्यायमूर्ति यादव के उस भाषण को लेकर है, जो उन्होंने 8 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यक्रम में दिया था। इस भाषण में यादव ने समान नागरिक संहिता के बारे में टिप्पणी की थी, और दावा किया था कि इसका उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है। इसके बाद उनके बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गए और कई आलोचनाएं सामने आईं। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि न्यायमूर्ति यादव ने अपने भाषण के दौरान नफरत फैलाने वाला संदेश दिया और सांप्रदायिक विद्वेष को भड़काया। नोटिस में यह भी कहा गया है कि न्यायमूर्ति यादव ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ पूर्वाग्रह प्रदर्शित किया और समान नागरिक संहिता जैसे राजनीतिक मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त किए, जो न्यायिक जीवन के मूल्यों का उल्लंघन करते हैं।

इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और न्यायमूर्ति यादव के कथित विवादास्पद बयानों पर समाचार रिपोर्टों का ध्यान आकर्षित किया। कोर्ट ने इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से विस्तृत जानकारी मांगी है। विपक्षी दलों का कहना है कि न्यायमूर्ति यादव का यह बयान उनके पद की गरिमा के खिलाफ है और इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।

यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न्यायपालिका और राजनीति के बीच की सीमा रेखाओं को लेकर बहस का हिस्सा बन गया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट और संसद किस दिशा में कदम उठाते हैं।

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