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न्याय या नौटंकी? करोड़ों में खेला जा रहा याचिकाओं का खेल!”

महंगा होता इंसाफ और बढ़ती मुकदमे बाजी की धारणा। सरकार कानून पर कानून बना रही हैं और त्रस्त जनता खासकर मुस्लिम समाज कभी हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में इस कानूनों के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज करती है और एक नहीं दर्जनों कभी सैकड़ों पिटिशन कोर्ट्स में इकट्ठी हो जाती हैं जिनको कोर्ट क्लब कर सुनवाई करता हैं। अब सवाल यह है कि एक एक पिटीशन पर लाखों रूपए खर्च होते हैं और मल्टी पिटिशन के ऊपर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं और उस का भार जनता के ऊपर पड़ता है तो फिर यह मल्टी पिटिशन डालने का क्या फायदा है। एक पिटीशन सारे तथ्यों के साथ डाली जाए तो हर साल जनता के करोड़ों रुपए बच सकते हैं और कोर्ट का काम भी आसान हो जाएगा और इंसाफ करने के लिए सही तथ्य भी आसानी से मिल जाएंगे। वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ तादिनांक पंद्रह पिटीशन फाइल हो चुकी हैं सिलसिला अभी जारी है इस नामवरी के खेल में भी कम खर्च में ज्यादा सफलता मिल सकती हैं। मगर दर्द किसको है। मुकदमों की आड़ में बढ़ता हुआ इंसाफ के लिए खर्च आखिर जनता की गाढ़ी कमाई से ही तो पूरा होता है सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक संस्थाओं पर इसका कोई असर नहीं होता बल्कि उनका नाम ऊंचा हो जाता हैं। सी ए ए या फिर और कोई कानून सरकार भी जनता का पैसा खर्च करती हैं और संस्थाएं भी । खेल जारी है और आगे भी जारी रहेगा।

खुर्शीद अहमद सिद्दीकी,
37, प्रीति एनक्लेव, माजरा, देहरादून उत्तराखंड।

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