अंबेडकर पर अशोभनीय टिप्पणी एक सोच का परिचायक….

क्या होता है किसी नेता या मंत्री का पुतला फूंकने से? शायद दिल का खुमार निकल जाता हो। असल बात यह है कि क्या मंत्री जी की पार्टी वा समाज ने कभी आंबेडकर जी या उनके समाज को तस्लीम किया। यह तो भारतीय समाज पर लार्ड मैकाले का एहसान है कि सर्व समाज के लिए शिक्षा के दरवाजे खोल गए वरना कहां मुमकिन था भारतीय जातिगत व्यवस्था में कि ब्राह्मण के अलावा कोई शिक्षा ग्रहण कर पाता और आज भारतीय संविधान के मूल भाव समानता की बात करता। यह कहां हो पाता कि सरकारी नौकरियों में, पार्लियामेंट में शोषित समाज के लोग बराबरी के साथ बैठ सकते। इसके बावजूद भी क्या यह बराबरी सामाजिक जिंदगी में भी है या सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए दिखावा है। आज भी आंबेडकर समाज के दूल्हे को घोड़ी पर बैठने का हक शायद नहीं है, भोजन माता के हाथ का बना खाना स्वर्ण समाज के बच्चे अगर खाएंगे तो धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। आज भी समाज में परोक्ष वा अपरोक्ष यह बात स्वीकार्य नहीं है। तो सत्ता के गलियारों में यह आडंबर क्यों? इस शोषित समाज ने अपनी भरपूर कोशिश की कि हिंदू धर्म में हमारा समावेश हो जाए परन्तु थक हार कर फिर आंबेडकर जी पर आकर निगाह टिक गई कि हमारे समाज के मोक्ष दाता यही है और इन्हीं के चरण कमल में हमारा भौतिक विकास हो सकता है इसलिए समाज का एक बड़ा वर्ग पुरानी सारी मान्यताओं को छोड़ कर आंबेडकर वादी हो गया है और आंबेडकर जी को अपना पूजनीय मानने लग गया है इनके आंबेडकर प्रेम और मंत्री जी के आंबेडकर प्रेम में बहुत फर्क है इसलिए मंत्री जी की ज़बान फिसल जाती हैं और अनादर हो जाता है या यूं कहें कि अंदर की सच्चाई सामने आ जाती है। “अब पछतावत क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत” जो मंत्री जी कह दिया सो कह दिया अब विरोध में नारे लगाओ, पुतला दहन करो, जलसे जलूस करो, ज़बान से निकली बात वापस नहीं आती। बस एक ही बात हो सकती हैं कि मंत्री जी अपनी गलती का एहसास कर स्वर्ण मंदिर की सेवा की तरह अपना पद त्याग कर तीन महीने आंबेडकर समाज की सेवा करें और समाज के दुख दर्द को समझे तो शायद आंबेडकर जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वैसे मंत्री पद रहते यह मुमकिन नहीं इसलिए पुतला दहन से ही विरोधियों का मन हल्का हो जाएगा। महान सोच और दावा है। कि हम सबका साथ, सबका विश्वास और सबके विकास की नीति पर राज काज कर रहे हैं। समानता और समरसता का पाठ अभी पढ़ने की आवश्यकता है जुमलो से कहां यह मकसद पूरा हो सकता है। भारतीय समाज तो छिन छिन हो रहा हैं इसको जोड़ने के लिए काम करने की जरूरत है। अभी तो झूठ की परिकाष्ठा में सिर्फ अलगाववाद ही पनप रहा है।

खुर्शीद अहमद सिद्दीकी,
सह सचिव, उत्तराखंड जमीयत उलेमा हिंद,
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून उत्तराखंड। Mo 9548310328

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