आज सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय को अंतरिम संरक्षण प्रदान किया, और निर्देश दिया है कि उत्तर प्रदेश प्रशासन उनके लेख के संबंध में उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाएगा। जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग वाली उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई की।खंडपीठ ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर भी कुछ टिप्पणी की, कहा कि लोकतांत्रिक देशों में विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता सम्मानित है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत पत्रकारों के अधिकारों का संरक्षण है। केवल इसलिए कि एक पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में माना जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामले नहीं लगाए जाने चाहिए।
उपाध्याय ने पत्रकारीय लेख राज बनाम ठाकुर राज (या सिंह राज)’ किया था और उसी के अनुसरण में, उनके खिलाफ बीएनएस अधिनियम की धारा 353 (2), 197 (1) (C), 302, 356 (2) और आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
बताया जा रहा है की नेता अखिलेश यादव ने अपने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में इसकी सराहना किए जाने के बाद उनका लेख चर्चा का विषय बन गया। जिसके बाद उन्हें बहुत सी धमकियां भी मिलने लगी, जिसके बाद उन्हें यूपी पुलिस के कार्यवाहक डीजीपी को ईमेल लिखा और यूपी पुलिस ने उन्हें जवाब देते हुआ कहा की “आपको इसके द्वारा चेतावनी दी जाती है। और सूचित किया जाता है कि अफवाहें या गलत सूचना न फैलाएं”। याचिकाकर्ता ने बताया कि उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भगवान के समान सम्मानित किया गया है।
रिपोर्ट:- कनक चौहान