ताजमहल के बंद कमरों में रखी हैं मूर्तियां? RTI में पूछे गए सवाल का ASI ने दिया ये जवाब….

आगरा. दुनिया भर में प्रसिद्ध आगरा के ताज महल के प्राचीन मंदिर होने और इसके तहखानों में स्थित बंद कमरों में मूर्तियां छुपी होने के दावों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने एक बार फिर से खारिज किया है. दरअसल पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता साकेत गोखले ने इसे लेकर एक आरटीआई आवेदन दिया था, जिस पर एएसआई आगरा ने जवाब दिया है. एएसआई ने साफ किया कि ताजमहल में कोई भी बंद कमरा नहीं है और किसी कमरे में हिन्दू देवी-देवता की मूर्ति नहीं रखी हुई है.

साकेत गोखले ने खुद ट्वीट कर इस बारे में जानकारी दी है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मुझे बताया कि ए.) जहां ताजमहल है उस स्थान पर कोई मंदिर मौजूद नहीं था. बी.) ताजमहल में ‘मूर्तियों वाले बंद कमरे’ नहीं हैं.’ गोखले ने इसके साथ ही लिखा है, ‘उम्मीद है कि अदालतें बीजेपी/आरएसएस की सभी शरारती याचिकाओं पर जुर्माना लगाएगी और मीडिया वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगा.’

दरअसल दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल को लेकर हाल के दिनों कई दावे सामने आए. किसी ने इसके प्राचीन शिव मंदिर होने का दावा किया, किसी ने इसे जयपुर राजघराने का प्राचीन महल बताया. इसी बीच इसके 22 बंद कमरों को खोलने को लेकर पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका भी डाली गई थी, जिसे कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए खारिज कर दिया था.

गौरतलब है कि अयोध्या के रहने वाले रजनीश सिंह ने ताजमहल के इतिहास का पता लगाने के लिए एक समिति गठित करने और इस ऐतिहासिक इमारत में बने 22 कमरों को खुलवाने का आदेश देने का आग्रह करते हुए याचिका दायर की थी. इस याचिका में 1951 और 1958 में बने कानूनों को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध घोषित किए जाने की भी मांग की गई थी. इन्हीं कानूनों के तहत ताजमहल, फतेहपुर सीकरी का किला और आगरा के लाल किले आदि इमारतों को ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया था. कई दक्षिणपंथी संगठनों ने अतीत में दावा किया था कि मुगल काल का यह मकबरा भगवान शिव का मंदिर था. यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने याचिका पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अदालत लापरवाही भरे तरीके से दायर की गई याचिका पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आदेश पारित नहीं कर सकती है.

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