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कंचनजंगा के रहस्यों के बारे में कितना जानते हैं आप ,इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए बड़ा जिगरा..

हिमालय में स्थित इस पर्वत शिखर की ऊँचाई 8,586 मीटर है जिसे कंचनजंगा हिमाल कहा जाता है. कंचनजंगा क्षेत्र से निकलने वाली तमूर नदी और तिब्बत से अरुण नदी और सुन कोसी शामिल हैं। पूर्व से पश्चिम तक सुन कोशी की सहायक नदियाँ दूध कोशी, लिखु खोला, तमाकोशी नदी, भोटे कोशी और इंद्रावती हैं।दुनिया में कई खूबसूरत जगह हैं, जहां लोग घूमने जाते हैं। हर साल लोग कई नई-नई जगहों पर जाते हैं, और वहां से कई अच्छी यादें लेकर घर लौटते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में कई ऐसी जगह भी हैं, जो रहस्यों से भरी पड़ी हैं.

गुरु रिन्पोछे ने पहली बार कंचनजंगा को एक देवी के रूप में पूजा और तबसे बौद्ध मान्यताओं में कंचनजंघा का एक अलग महत्व है, भले ही हमें कंचनजंगा एक नाम लगता हो, लेकिन ये चार शब्दों से मिलकर बना है। इसमें कांग यानी बर्फ, चेन यानी बड़ा, इजो यानी खजाना अंगा यानी पांच। ये तिब्बतियन शब्द है और इसका मतलब होता है कि बर्फ में दबे पांच खजाने। माना जाता है कि हर खजाना भगवान के द्वारा रखा गया है।

जो ब्राउन और जॉर्ज बैंड। ये दोनों ऐसे शख्स थे जिन्होंने 25 मई 1955 को कंचनजंगा पर चढ़ाई की थी। इन दोनों ने स्थानीय निवासियों से ये वादा किया था कि वो पर्वत की चोटी पर नहीं चढ़ेंगे। माना जाता है कि कंचनजंगा की चोटी पर भगवानों का निवास होता है। इसलिए कोई भी वहां तक नहीं जाता है।
कहा जाता है कि आजतक कोई भी पर्वतारोही इसकी चोटी पर खड़ा नहीं हो पाया है। हालांकि, 200 पर्वतरोहियों ने इसके काफी पास जाने की कोशिश की, जिसमें से कुछ लोग इसी कोशिश में मारे गए। इसलिए कोई भी कंचनजंगा चोटी से कुछ फिट दूर ही रूक जाता है।
कहा जाता है कि यहां कई लोग गायब भी हो चुके हैं। तुलशुक लिंग्पा नाम का एक तिब्बतियन भिक्षु अपने 12 साथियों के साथ एक नए रास्ते की खोज पर इस चोटी पर निकला था। वो जोर-जोर से मंत्र पढ़ता हुआ जा रहा है। लोग मानते हैं कि इसके बाद वो कहीं गायब हो गया। वहीं, कुछ लोग कहते हैं कि वो हिमस्खलन का शिकार हो गया।

कहा ये भी जाता है कि कंचनजंगा पर आज तक जिन लोगों की भी मौत हुई, उनके शव आज तक नहीं मिले। साल 1992 में एक पोलिश पर्वतारोही वांड ने कंचनजंगा पर जाने की कोशिश की। वो हिमालय की सभी 14 चोटियों पर चढ़ाई करने वाली पहली महिला बनना चाहती थी, लेकिन वो अचानक गायब हो गई और उसका शरीर आज तक नही मिला, साथ ही इस पहाड़ का शुरू से सिक्किम के लेपचा समुदाय से नाता रहा है. लेपचा समुदाय का इतिहास क्या है? इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता. पर मान्यता है कि इनका संबंध कंचनजंगाकी बर्फ से है इसलिए लेपचा लोग कंचनजंगाको पवित्र और खुद को कंचनजंगाके बर्फ से पैदा हुआ मनुष्य मानते हैं.

रिपोर्ट:-अमित कुमार सिन्हा (रांची)

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