उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंस रही है, घरों पर पड़ने वाली दरारें लोगों की धड़कनें बढ़ा रही हैं. पवित्र बद्रीनाथ धाम से महज 45 किलोमीटर दूर जोशीमठ में हैरान करने वाला मंजर है. कई इलाकों में लैंडस्लाइड और दरकती दीवारों की वजह से लोग दहशत में जीने को मजबूर हैं. वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण करने और प्रभावित परिवारों से मिलने शनिवार को जोशीमठ पहुंचे.
सीएम धामी माउंट व्यू होटल पहुंचे. जहां वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और SDRF की टीमों को तैनात किया गया था. दरअसल, माउंट व्यू और मल्लारी होटल जमीन धंसने के कारण आपस में टकरा गए हैं. इन होटलों के पीछे के इलाके में कई घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं.
मुख्यमंत्री ने जोशीमठ का हवाई सर्वेक्षण किया. धामी ने दौरा करने के बाद कहा कि जोशीमठ हमारे लिए एक महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक स्थान है. हमारा मुख्य मकसद सभी को बचाना है. विशेषज्ञ इसके कारणों को जानने की कोशिश कर रहे हैं. हम लोगों को सुरक्षित स्थानों पर रखने की कोशिश कर रहे हैं.
हिमालयन भूविज्ञान पर 35 साल से ज्यादा समय से शोध कर रहे एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल ने बताया कि पहाड़ के ज्यादार गांव, शहर भूस्खलन के मलबे या स्लोप पर बने हैं. हम बहुत नाज़ुक दौर में हैं. इस पर सरकार को एक्शन लेना होगा. जोशीमठ को अभी भी बचाया जा सकता है
जोशीमठ की नींव कैसे हुई कमजोर?
प्रोफेसर सुंदरियाल ने बताया कि जिस तेज़ी से जोशीमठ में विकास किया जा रहा है, वो कई सालों से समस्या का कारण बन हुआ है. 1946 में जाने माने भू-वैज्ञानिक औगुस्तों गैंसर ने अपने शोध में कहा था कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा हुआ एक शहर है. प्रोफेसर सुंदरियाल ने बताया कि जोशीमठ की सतह में चट्टान कम और मिट्टी ज्यादा है और खराब पानी प्रबंधन, सीवर प्रबंधन की वजह से वहां से पानी रिसाव होता रहता है. इस वजह से जोशीमठ की नींव कमज़ोर हो गई.
‘फैब्रिकेटिड मकान ही बनने चाहिए’
प्रोफेसर सुंदरियाल ने कहा कि एनटीपीसी के विष्णु गरुड़ प्रोजेक्ट के तहत टनल में जो विस्फोट किए जा रहे हैं, वो इतने शक्तिशाली हैं कि आर्टिफिशल भूकम्प पैदा कर रहे हैं. दरअसल, जोशीमठ एक स्लोप पर बसा शहर है और उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्र स्लोप या भूस्खलन के मलबे पर बसे हैं. अगर उनकी नींव में दरार आएगी तो ज़मीन धंसेगी ही. एनटीपीसी द्वारा बनाए जा रहे फैब्रिकेटेड मकानों के बारे में सुंदरियाल ने कहा कि हिमलयी क्षेत्रों में फैब्रिकेटिड मकान ही बनने चाहिए.