अलविदा सुब्रत: जाने कैसे फर्श से अर्श तक पहुंचे सहारा समूह के संस्थापक खटारा स्कूटर से ….

सहारा श्री सुब्रत रॉय का शून्य से लेकर शिखर तक का सफर काफी रोचक है। उन्होंने सुब्रत राय से सहारा श्री सुब्रत रॉय बनने तक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे। करिअर की शुरुआत गोरखपुर में नमकीन-स्नैक्स बेचने से की।

1978 में गोरखपुर में एक छोटे से ऑफिस में सहारा समूह की नींव रखी। इंडस्ट्रियल एरिया में कपड़े और पंखे की फैक्टरी शुरू की। रॉय के नेतृत्व में, सहारा ने कई व्यवसायों में विस्तार किया। वर्ष 1983-83 में कारोबारी मित्र एसके नाथ ने अलग होकर राप्ती फाइनेंस बना ली। इसी साल सुब्रत राय ने लखनऊ में कंपनी का मुख्यालय खोला।

रॉय का साम्राज्य फाइनेंस, रियल एस्टेट, मीडिया और हॉस्पिटैलिटी से लेकर अन्य सेक्टर्स में फैला। कामयाबी के शिखर पर पहुंचने के बाद भी कभी पुराना समय नहीं भूले। गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने जीवन के तमाम अनुभव सार्वजनिक किए थे। 18 अप्रैल 2013 को गोरखपुर क्लब में आयोजित सम्मान समारोह में सुब्रत रॉय आए थे जिसमें बेबाकी से अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को सबके सामने रखा था।

बताया था कि गोरखपुर कर्मस्थली रही और यहां की गलियों से वाकिफ हूं। पढ़ा-लिखा और कारोबार की शुरुआत यहीं से की। शहर के कनक हरि अग्रवाल बताते हैं कि उस कार्यक्रम में वह भी शामिल थे। सहारा श्री ने कहा था कि स्कूटर से घूमने और नॉन बैकिंग की शुरुआत यहीं से की।

सिनेमा रोड स्थित कार्यालय के एक कमरे से दो कुर्सी और एक स्कूटर के साथ उन्होंने दो लाख करोड़ रुपये तक का सफर तय किया। थोड़ी पूंजी हुई तो 1978 में इंडस्ट्रियल एरिया में कपड़े और पंखे की फैक्ट्री शुरू की।

इस दौरान लैम्ब्रेटा स्कूटर से पंखा और अन्य उत्पादों को बेचा करते थे। दुकानों पर पंखा पहुंचाने के साथ ही वह दुकानदारों को स्माल सेविंग के बारे में जागरूक करते थे। बैंकिंग की जरूरतों के साथ रोजगार के अवसर के बीच सहारा का ‘गोल्डेन की’ योजना क्रान्तिकारी साबित हुई जिसमें समय-समय पर होने वाली लाटरी ने लोअर मिडिल क्लास में मजबूती से जोड़ा। वर्ष 1983-83 में कारोबारी मित्र एसके नाथ ने अलग होकर राप्ती फाइनेंस बना ली। इसी साल सुब्रत राय ने लखनऊ में कंपनी का मुख्यालय खोला।

सुब्रत रॉय का जन्म भले ही बिहार में हुआ हो, लेकिन उन्होंने अपने कारोबार की शुरुआत गोरखपुर से की थी। शुरुआत में वह स्कूटर पर चला करते थे। वे अपने करीबी 13 दोस्तों को कभी नहीं भूले जिन्होंने उनके बुरे समय में साथ दिया। जब करोड़ों के मालिक बने तो उन्होंने सभी पुराने दोस्तों को अपने साथ जोड़ा और कंपनी में बड़ा ओहदा दिया।

सुब्रत राय का करीब चार दशक का कारोबारी सफर सफलता की बुलंदियों को छूने वाला साबित हुआ। लखनऊ के सहारा शहर में राजनेताओं, फिल्म कलाकार और क्रिकेटर्स का लगने वाला जमावड़ा इसका गवाह बन चुका है। सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से उनके करीबी रिश्ते जगजाहिर थे तो भाजपा और कांग्रेस के तमाम बड़े नेता उनके मुरीद थे।

साल 1978 में एक स्कूटर और 42 निवेशकों के साथ शुरू हुई चिटफंड कंपनी से सहारा धीरे-धीरे देश के तमाम उद्योगों में जगह बना ली। रियल स्टेट, टेलीकॉम, टूरिज्म, एयरलाइन, सिनेमा, खेल, बैंकिंग और मीडिया जैसे क्षेत्रों में सुब्रत रॉय सहारा ने हाथ आजमाया। उनकी कंपनी ने न्यूयार्क, लंदन में भी अपने पैर पसारे। एक दौर ऐसा था जब प्रतिष्ठित टाइम्स मैग्जीन ने सहारा ग्रुप को भारत में रेलवे के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली कंपनी का तमगा दिया था।

कुछ साल पहले तक वे भारत के चुनिंदा उद्योगपतियों में गिने जाते थे। “सहारा श्री” के नाम से मशहूर, सुब्रत रॉय सहारा की पैठ हर क्षेत्र में थी, फिर उनके सामने क्या नेता और क्या अभिनेता, तमाम लोग उनके चक्कर काटते थे।

उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम को कई सालों तक स्पांसर किया। इसी तरह हॉकी को भी प्रोत्साहित किया। बॉलीवुड स्टार अमिताभ बच्चन, मशहूर राजनेता अमर सिंह उनके पारिवारिक सदस्यों की तरह थे। सुब्रत राय बड़े उत्साह से भारत पर्व कार्यक्रम आयोजित करते थे। उनके दोनों बेटों की शादी लखनऊ में शाही अंदाज में हुई थी, जिसमें देश-विदेश से मशहूर हस्तियों को आमंत्रित किया गया था।

इस शादी में खर्च की चर्चा सालों तक लोगों की जुबान पर तैरती रही। सहारा समूह गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह समारोह भी भव्य तरीके से आयोजित करता था। गोरखपुर और लखनऊ में श्मशान घाट के पुनरुद्धार का काम भी सहारा समूह ने किया था।

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