झूठी पैग़म्बरी (नबूवत ) के दावेदार अल्लाह के दूत (हज़रत मुहम्मद साहब) के समय से ही पैदा हो गए थे, तब से क़यामत के दिन तक, सच्चे धर्म के ख़िलाफ़ और सच्चे रसूल के बारे में अनगिनत प्रलोभन (फितने ) आते रहेंगे और जाते रहेंगे। लेकिन ये फितनो का सैलाब अक्सर ओ पेशतर मुसलमानों के बीच से और मुस्लिम देशों से उठ रहे हैं और हर कोई यह ही दावा कर रहा हैं कि हम और हमारा फिरका ही सही हैं, लेकिन अगर हर समस्त संप्रदाय या फिरको पर नजर डालें तो या तो मूल धर्म के असूलो ( आदर्शो) को पूरी तरह से मानने में या तो बहुत कमी है या बढ़ोतरी की जा रही है दोनों ही मामलों में जहां कमी और अति है साफ है कि दुष्ट धर्म गुमराही से भरा है और यह गुमराही पैगम्बर के युग से निरंतर चलती आ रही है जिसका मुकाबला पैगम्बर के साथियों ने प्रलोभनों (फितनो) के विरुद्ध संघर्ष करके किया परन्तु इसके बावजूद धार्मिक मान्यताओं का विरूपण उस समय भी जारी रहा और आज भी जारी है, हालाँकि इस समय सभी जमाते, अकबरीन उम्मत अपने अपने तरीके से खासकर भाषण अभियान से दिन-रात उम्मत को समझाने की कोशिश कर रहे है उसके लिए बड़ी छोटी सभाए निरंतर हो रही है। मगर इन कोशिशों से कितना इन फितनों का कला कमा हो रहा है यह समझना जरूरी हैं आज भी मेहदियत, बहाईअत, कादिआनिअत, शकीलिअत, गामदीअत, परवेजीअत, मिरजायत और नया फितना यूनिवर्सल फेथ समाज में अपनी पैंठ बनाए हुए है और फल फूल रहे हैं। यह भी समझना जरूरी हैं कि इन सब फितनों की पुश्त पनाही भी की जाती हैं और इन प्रोजेक्ट्स की फंडिंग भी की जाती हैं।
अब तक तरह तरह के जितने फितने जन्म लेते रहे वह सब आस्था और विश्वास पर चोट करते रहे और हमारे बीच के लोगों को गुमराह करते रहे और ईमान लूटते रहे। हम हैं कि इन सब से ला तालुक एक-दूसरे के व्यवहार पर चर्चा करते रहे एक-दूसरे की कमियां ढूंढते रहे लेकिन हमे पता ही नही चला कि अचानक एक नया फितना हमारे बीच फूट पड़ा और हमारे लोगों का ईमान लुटने लगा और हमें इसका पता भी नही चला यह नए नए फितने कभी महदिअत के रूप में कभी कादानीअत कभी शकीलियत और अब यूनिवर्सल फेथ या दीन इब्राहिमी के रूप में उजागर हो रहे है मगर जब हमको इनकी खबर लगती है या हमे तब एहसास होता है तब पानी सिर से ऊपर पहुंच जाता है और फिर उसके बाद शुरू होता है बैठकों और सभाओं का दौर और यह फिर दिन-रात इन प्रलोभनों (फितनों) को खत्म करने के लिए संबोधन और गोष्ठि का कार्यक्रम और जगह जगह भाषण कार्यक्रम की शुरुआत और उसका आखिर पेट भर हॉट प्लेट बिरयानी और आयोजन का समापन हो जाता है भूली-बिसरी यादें को फिर से अगले प्रोग्राम में याद कर उस दर्द को लोगों में बांट दिया जाता है और हमारी जिम्मेदारी पूरी ।
कुछ दिन पहले एक समूह के स्वयंसेवक से बात करने का अवसर मिला जो आदिवासियों के बीच में काम कर रहे हैं वह स्वयं सेवी महीनों महीनों अपने घर नहीं जा पाता हैं, अपने बैग में सतव, चना और गुड़ लेकर कभी पैदल यात्रा करते हैं कभी सवारी पर और अपने मिशन के लिए हर कच्ची पक्की सड़क से यात्रा आदिवासियों के बीच अपना मिशन लेकर पहुंच जाते हैं। उनके लिए उनका मिशन अपनी जिंदगी है। क्या इस तरह के स्वयंसेवी के काम और विश्वास को कोई फितना डगा सकता है ।
यह फितना परवर लोग तवातार के साथ चुपके चुपके फितनों पर काम करते हैं उनके लिए फील्ड में काम करने वाले रजाकार जो अपनी जान मॉल की कुर्बानी देते हैं वही इस तरह के फितनो को रोक सकते है क्योंकि यह फितना परवर भी उसी समाज का हिस्सा होते हैं परंतु समाज में भ्रांतियां फैलाने में सक्षम होते हैं और इस प्रकार कार्य करते हैं कि समाज में उनके हमनवा बन जाए इसलिहार छोटा फितना बड़ा होकर एक तनावर वृक्ष बन जाता है फिर उसे काटना बहुत कठिन हो जाता है। इसलिए आवश्यकता हैं कि इन फितनों को रोकने के लिए समाज में जागरूकता फैलाएं पुरषों, औरतों, लड़के और लड़कियों से अलेहदा अलहदा ग्रुप बनाकर अकीदो के मुतालिक वार्तालाप की जाए और हर मस्जिद से उनका ब्योरा बना जाए ताकि उनके ईमान ओ यकीन की हिफाजत हो सके।
यह वक्त उम्मत की खैर खुवाई का वक्त है और लोगो के ईमान को इस तरह के फितनों से बचाने का वक्त है।
आपका,
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीति एनक्लेव, माजरा, देहरादून।