दौलत कमाने और इक्ट्ठा करने की कितनी बड़ी होड़ होती है इसका साक्ष्य देहरादून में चल रही रजिस्ट्री घोटाले से पता चलता है कि यह हवस कानूनविदो को भी किस स्तर पर ले आती है जबकि उनको पता होता कि यह कान जो वोह कर रहें है वह गैरकानूनी ही नही बल्कि एक हकदार की हक़ तल्फी है। इस घोटाले से यह भी बात स्पष्ट होती है कि यह दौलत की रैल पैल यूंही नही होती बल्कि इसके लिए मर्यादा की भी रैल पैल करनी पड़ती है। परत दर परत तो बहुत सी बाते सामने आएंगी कुछ पसपर्दा भी रह जाएंगी मगर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने काफी हद तक इन तथ्यों को नंगा कर दिया है। भ्रष्टाचार का यह गठजोड़ अब सरकारी हलकों, व्यवसाय, सियासत, उद्योग तक मेहदूद नही रहा हैं बल्कि भ्रष्टाचार को सर अंजाम देने के लिए कानून को भी प्रायोजित तरीक़े से इस्तेमाल किया जा रहा है।
उद्योग वा व्यवसाय अपनी टैक्स की देनदारी कानून की लच्छेदारी से काम कर पाते हैं देखा गया है कि बड़े कॉरपोरेट जिनके कार्य करने के रेट बाजार रेट से कई गुना होते हैं साल के आखिर में या तो उनको घाटा हो जाता है या प्रॉफिट सिर्फ कुछ %रह जाता हैं एजुकेशनल सोसाइटीज जो कैपिटेशन फीस, ट्यूशन फीस, और न जाने कितनी फीस के नाम पर आजकल इस पीढ़ी के होनहारों के मां बाप की कमर तोड़ देने के लिए काफी है क्योंकि शिक्षा इतनी महंगी हो गई हैं कि इस वक्त अच्छे अच्छों के बस के बाहर होती जा रही है और पूरा लुटने के बाद भी नौकरी नहीं।
इतनी कमाई के बाद भी उनकी बैलेंस शीट नो प्रॉफिट में हर साल मान ली जाती है मगर हार साल करोड़ों रुपए के एसेट्स सोसाइटीज के खाते में जुड़ते चले जाते हैं और बिल्डिंग पर बिल्डिंग बनती चली जाती है। खेल चल रहा है और भारत की जनता लुटती जा रही है। धन कुबैर और बड़े धन कुबैर, गरीब और बड़े गरीब। खाई दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं और भारत की संपदा ऐसे ही जुगड़ियो के पास पाप की गठरी बनती जा रही है जिसको ब्लैक मनी या अनअकाउंटेड मनी के नाम से बाबाजी पुकार रहें हैं। मगर बाबाजी अपने बारे में मौन है।
हमारा समाज यह खेल बड़ी आसानी से कानूनी लच्छेदारी से खेल रहा हैं और समाज का यह भ्रष्ट वर्ग आसमानों में उड़ रहा है। मगर समाज को अंदर अंदर दीमक की तरह खा रहा है।
जैसा की कहा जा रहा है कि सारे विश्व में सरकारी पॉलिसीज इनके अनुसार मोल्ड की जाती है और इसका असर हमारे भारत पर विश्व कर्मा के नाते पड़ता है यही वजह है कि भारत की 60% पूंजी इन 10%भारतीयो के पास जमा हो गई है और वो दिन दूर नही जब भारत की तमाम संपदा मात्र 2% भारतीयो के पास, जैसा की विश्व अनुमान है, रह जाएगी और 98% वंचित समाज जो इनकी गुलामी स्वीकार करने के लिए बाध्य हो जाएगा। और यह ट्रेंड भारत में ही नही पूरे विश्व के लिए पूंजीवाद की अंतिम और असहनीय चोट होगी जो सारे समाज को तोड़ कर रख देगी।