दज्जालियत ( कादियानियत शकीलियत का प्रलोभन) एक रूप….

इरशाद नबी हैं कि यह युग प्रलोभनों का युग है और ये प्रलोभन उसी तरह आएंगे जैसे आपके घरों में बारिश की बूंदें गिरती हैं। प्रलोभन के इस युग में हमारी क्या जिम्मेदारी है और इसे रोकने के लिए क्या कार्रवाई की अवयश्कता है कानूनी तौर पर भारत में सभी को अपना-अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता है, इसलिए कानूनी तौर पर इन धार्मिक प्रलोभनों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। इसके लिए आपसी परामर्श ही एकमात्र उपाय है। यह वास्तविकता है कि मोजूदा शकीलियत वा कादियानियत दज्जलियत का ही एक रूप और कड़ी है और इसके प्रलोभन और समाज में इसके होने वाले असर हमारे सामने है और यह भी एक हकीकत है कि इसकी पीठ पर ज़ायोनी शक्तियां हैं जो इस्लाम में विकृति पैदा करना चाहती हैं और ईसा मसीह वा इमाम मेंहदी की आमद के बारे में विरोधाभास को बढ़ावा देना चाहती हैं और वे हमारे युवाओं और कमजोर विश्वास वाले हमारे भाइयों और बहनों को धोखा दे कर उनके विश्वास को शिकार बनाते हैं। इसलिए, हमें सही जागरूकता का कार्य करने की तत्काल और निरंतर आवश्यकता है।

  1. हमारे पास प्रत्येक मोहल्ले की मस्जिद से जुड़े घरों में रहने वाले लोगों का विवरण होना चाहिए।
  2. खासकर युवा लड़के-लड़कियों से हर महीने वार्तालाप एवं गोष्ठी करनी चाहिए। तथा उनके सामने आने वाली समस्याओं का समाधान उनके समक्ष प्रस्तुत करने की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि भाईचारा और बे जिझक वातावरण स्थापित हो सके। और हमारे युवा उनके जाल से बच सकें।
  3. महिलाओं में अनिवार्यता के साथ जागरूकता प्रोग्राम करने के लिए एक अनुशासन बनाया जाना चाहिए ताकि वे भी प्रलोभन और धोखे के प्रति जागरूक हो सकें।
  4. दज्जाल के प्रकट होने से पहले ही दज्जाल का प्रलोभन शुरू हो गया है और ये सभी मौजूदा प्रलोभन इसी का हिस्सा हैं, क्योंकि दज्जाल का मुख्य उद्देश्य आपकी इस्लामी मान्यताओं को नष्ट करना और अपने आप खुद को ईश्वर के रूप में पहचान दिलाना है। यह मामला सत्य और असत्य के बीच की लड़ाई है, जो विश्वासियों के लिए एक परीक्षा और आशीर्वाद की तरह है।
  5. हमारे युवाओं को मोबाइल फोन के उपयोग, उसकी उपयोगिता और खतरों के बारे में जानकारी देने की जरूरत है।
  6. उनके झूठे प्रचार को कुरान और हदीस की रोशनी में दलीलों के साथ खारिज करने की व्यवस्था बनाने की जरूरत है।
  7. उनके झूठे तर्कों को मस्जिदों और बैठकों में सच्चे तर्कों से समझाने की जरूरत है ताकि आम श्रोताओं को भी सही जानकारी मिल सके और वो इन फितनों से बच सके।
  8. अगर ऐसे लोग समझने के बाद भी न समझें तो अल्लाह के दीन की खातिर तौबा करने तक पूरी तरह बहिष्कार कर लेना चाहिए।

इन सभी कार्यों को सही ढंग से करने की जरूरत है, इन सभी स्थितियों पर नजर रखने के लिए अपने इलाके में एक टीम बनाने की जरूरत है।

फिलहाल हमारी जागरूकता और संघर्ष ही इस अंधविश्वास के माहौल में हमारी रक्षा कर सकते हैं और ईश्वर ने चाहा तो हमें इन प्रयासों में अल्लाह की मदद भी मिलेगी।

आपका भाई
खुर्शीद अहमद
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून।

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