पहल / इंडिया गेट पर फेंकी गईं बोतलों में लोगों को पौधा गिफ्ट कर रहा दिल्ली पुलिस का यह कॉन्स्टेबल। - Express News Bharat
October 1, 2023

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पहल / इंडिया गेट पर फेंकी गईं बोतलों में लोगों को पौधा गिफ्ट कर रहा दिल्ली पुलिस का यह कॉन्स्टेबल।

  • कॉन्स्टेबल आशीष कुमार की प्लास्टिक वेस्ट से निपटने की कोशिश, सफाई के साथ एरिया भी स्वच्छ
  • पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को पीपल का पौधा दिया, संस्था से भी मिला सम्मान।

नई दिल्ली . नजफगढ़ निवासी पुलिस कॉन्स्टेबल आशीष कुमार दहिया ने 2012 में नौकरी ज्वाइन की थी। इनकी पोस्टिंग इंडिया गेट पर कमांडो पराक्रम वैन पर है। यहां उन्होंने देखा कि लोग घूमने आते हैं, तो वे पानी और कोल्ड ड्रिंक की बोतलें वहीं फेंक देते हैं। आशीष प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान से प्रेरित थे। आशीष ने इन बोतलों को गमले के रूप में इस्तेमाल करने की सोची। इसके बाद वह बोतलों को इकट्ठा करने लगे। आशीष उन्हें काटकर उनमें मिट्टी भरकर पौधा लगाते और फिर उसे वहां घूमने आने वालो को गिफ्ट कर देते। 37 वर्षीय आशीष इस तरह अब तक हजारों गमले गिफ्ट कर चुके हैं। 

7 साल में 1 हजार से ज्यादा गमले उपहार में दे चुके हैं
आशीष दहिया ने पुलिस कमिशनर अमूल्य पटनायक को गमला गिफ्ट किया है। इन्हें एक संस्था पर्यावरण योद्धा सम्मान भी दे चुकी है। ऐसा भी नहीं कि आशीष केवल इंडिया गेट से ही बोतलें उठाते हैं। उन्हें जहां कहीं बोतल फेंकी हुई दिख जाती है, उसे वह उठा लेते हैं। पिछले 7 साल से इस काम में लगे कॉन्स्टेबल आशीष अब तक करीब एक हजार से ज्यादा प्लास्टिक की बोतलों में पौधे लगाकर उन्हें लोगों को दे चुके हैं। 

india gate

शुरू में लोग मजाक उड़ाते थे अब तारीफ करते हैं 
आशीष बताते हैं शुरू में बोतलें उठाने पर लोग मजाक उड़ाते थे, लेकिन अब तारीफ करते हैं। हरियाणा में सोनीपत के सिसाना गांव निवासी आशीष के पिता सैनिक रहे हैं। आशीष ने 2012 में दिल्ली पुलिस ज्वाइन की थी। खाली बोतल में पौधरोपण करने के सवाल पर बताया, मैं समाज को संदेश देना चाहता हूं।

जन्मदिन और सालगिरह पर खुद भी लगाते हैं पौधे
परिवार में किसी का जन्मदिन हो, सालगिरह हो या कोई खास दिन, वह पौधा लगाकर मनाते हैं। शादी समारोह में शगुन के तौर पर पौधा भेंट करते हैं। आशीष दादा स्व. चौधरी बस्तीराम दहिया को प्रेरणास्रोत मानते हैं। आशीष कहते हैं, हमें जन्म से मरण तक तरह-तरह के कामों के लिए लकड़ियों की जरूरत होती है। हमें उतने तो पौधे लगाने चाहिए, जितने हमारे काम आ चुके होते हैं। 

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