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चुनाव से पहले टकराव! बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट की नजर, उठाए ये बड़े सवाल….

बिहार में चुनावी बुखार चढ़ने लगा है और इसी बीच वोटर लिस्ट के खास पुनरीक्षण को लेकर सियासी घमासान छिड़ गया है। 9 जुलाई को तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और दीपांकर भट्टाचार्य जैसे बड़े नेता सड़क पर उतरे और चक्का जाम कर सरकार के खिलाफ विरोध जताया। अब ये लड़ाई कोर्ट में पहुंच गई है। ADR ने 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसे RJD, कांग्रेस समेत 9 पार्टियों का साथ मिला। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी है और याचिकाओं में 5 बड़े सवाल उठाए गए हैं – जो चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सीधा सवाल उठाते हैं।

बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जो याचिकाएं दायर की गई हैं, उनमें विपक्षी दलों और एक्टिविस्टों ने कुछ बड़े और बुनियादी सवाल उठाए हैं। आइए समझते हैं इन सवालों को एक सरल और मानवीय अंदाज़ में:

  1. क्या ये संविधान के खिलाफ है?
    विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव आयोग की यह पूरी प्रक्रिया संविधान और कानूनों की बुनियादी शर्तों को तोड़ती है। उनका आरोप है कि इससे आम लोगों के अधिकारों—जैसे बराबरी, स्वतंत्रता और वोट देने का हक—पर सीधा असर पड़ता है।
  2. नागरिकता, जन्म और निवास पर मनमानी
    कुछ याचिकाकर्ताओं ने चिंता जताई है कि इस प्रक्रिया में नागरिकों से ऐसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं जो उनके पास हो भी सकते हैं या नहीं। खासकर जन्म स्थान और निवास को लेकर जो कागज़ मांगे जा रहे हैं, वे गरीब और साधारण लोगों के लिए जुटा पाना मुश्किल है।
  3. लोकतांत्रिक सिद्धांत कमजोर करने वाला फैसला
    चुनाव आयोग पर यह आरोप भी लगाया गया है कि जिस तरह से वोटर वेरिफिकेशन हो रहा है, वह लोकतंत्र की आत्मा—यानी हर किसी को बराबरी से वोट देने का अधिकार—को चोट पहुंचाता है।
  4. गरीबों पर असमान बोझ
    याचिकाओं में साफ कहा गया है कि यह प्रक्रिया सबसे ज्यादा असर गरीबों, प्रवासी मजदूरों, महिलाओं और समाज के हाशिए पर खड़े लोगों पर डाल रही है। इनके लिए ज़रूरी दस्तावेज़ लाना, बार-बार सत्यापन कराना आसान नहीं होता।
  5. गलत समय पर शुरू की गई प्रक्रिया
    सबसे बड़ा सवाल यही उठाया गया है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ही ये पूरी प्रक्रिया क्यों शुरू की गई? क्या यह समय किसी खास मकसद से चुना गया? इससे यह शक पैदा होता है कि कहीं मतदाता सूची में मनचाहे फेरबदल की कोशिश तो नहीं हो रही।

इन सवालों का जवाब अब सुप्रीम कोर्ट से आने की उम्मीद है, लेकिन इतना तय है कि यह मामला सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की बुनियाद से जुड़ा है।

RJD की आपत्ति: गलत समय पर शुरू की गई प्रक्रिया
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि वोटर लिस्ट का विशेष पुनरीक्षण बिल्कुल गलत वक्त पर शुरू किया गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मनोज झा ने कहा कि यह प्रक्रिया इतनी जल्दबाज़ी में शुरू की गई है कि इसका असर करोड़ों मतदाताओं के अधिकारों पर पड़ सकता है और वे अपने वोटिंग अधिकार से वंचित रह सकते हैं।

चुनाव आयोग की सफाई
वहीं, विपक्ष के आरोपों पर चुनाव आयोग ने अपनी स्थिति साफ की है। आयोग का कहना है कि जिन मतदाताओं के नाम 1 जनवरी 2003 को जारी की गई मतदाता सूची में मौजूद हैं, उन्हें किसी भी दस्तावेज़ की जरूरत नहीं होगी चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि ऐसे लोग संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत स्वाभाविक रूप से भारत के नागरिक माने जाएंगे। वहीं, जिन लोगों के माता-पिता के नाम उस वक़्त की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं, उन्हें केवल जन्मतिथि और जन्मस्थान से जुड़ा प्रमाण

रिपोर्ट:- कनक चौहान

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