व्हाट्सएप पर निम्न पोस्ट को पढ़ने के बाद यह एहसास हुआ कि इन समस्याओं का हल भी तलाशा जाए और इसका हल सीरत मुस्तफा में ही मिला। अगर हम कुरान करीम के एहकमात को मान ले तो हम मुसलमानों की सारी माशी समस्याओं का हल हो सकता हैं।
- “वा तसेमू बि हैबलिल लाही जमिया” अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़ ले।
- इस्लामी अखूवत पर पाबंद हो जाए।
- कुरान करीम के एहकमात के मुताबिक अपने सदकात मुस्तहक़ीन को दें।
- अपने बीच में जकात का सुन्नती निजाम कायम करें।
“व्हाट्सएप पर लिखे पोस्ट के कुछ अंश निम्न हैं।”
“भारत में कुछ जगहों पर मुसलमानों की स्थिति अछूतों जैसी है। वहीं, दूसरी जगहों पर लोगों के घरों में काम करने वाले 70% रसोइए और नौकर मुसलमान हैं।
मुसलमान की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है। यहाँ ज़्यादा चिंता की बात यह है कि 1991 की जनगणना के बाद से मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय में कोई भी सुधार नहीं हो रहा है, जबकि ब्राह्मणों की आय लगातार बढ़ती जा रही है।
मुसलमान भारत मे कृषक समुदाय भी है। लेकिन उनके पास खेती के जो साधन हैं, वे 40 साल पीछे हैं। इसका कारण यह है कि मुसलमान होने के कारण इन मुसलमान किसानों को सरकार से उचित मुआवज़ा, ऋण और अन्य रियायतें नहीं मिल पा रही हैं। ज़्यादातर मुसलमान किसान कम आय के कारण आत्महत्या करने या अपनी ज़मीन बेचने को मजबूर हैं।
मुसलमानों छात्रों में “ड्रॉप आउट” यानी पढ़ाई अधूरी छोड़ने की दर अब भारत में सबसे ज़्यादा है। वर्ष 2001 में मुसलमानों ने इस मामले में सभी धनों को पीछे छोड़ दिया और तब से वे ड्रॉप आउट के डर में सबसे ऊपर हैं।
बेरोज़गारी की दर भी मुसलमानों में सबसे ज़्यादा है। समय पर नौकरी/रोज़गार न मिलने के कारण हर दशक में 14% मुसलमानों वैवाहिक सुख से वंचित रह जाते हैं। यह दर भारत में किसी भी समुदाय में सबसे ज़्यादा है।मुसलमानों की जनसंख्या में लगातार गिरावट व इसका कारण बेरोजगारी और गरीबी है। उनके घरों में भूख से मौतें होना अब आम बात हो गई है।
भारत में ईसाई समुदाय की प्रति व्यक्ति आय करीब 1600 रुपये, जनरल एससी/एसटी की 1200 रुपये और मुसलमानों की करीब 300 रुपये है और इसमें लगातार गिरावट आ रही है।
मुसलमान युवाओं में रोजगार की कमी और संपत्ति की कमी के कारण ज्यादातर आज नाउजोबिलाह मुस्लिम लड़कियां दूसरी जातियों में अरेंज मैरिज कर रही हैं।
उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि कुछ दशकों में मुसलमानों का सफाया हो जाएगा। जो बचे रहेंगे, वे उस जहर से नष्ट हो जाएंगे जो सोशल मीडिया पर दिन-रात मुसलमानों के खिलाफ गलत बातें लिखकर और उनका ब्रेनवॉश करके नई पीढ़ी के दिमाग में मुसलमानों के प्रति अंधी नफरत पैदा करके भरा जा रहा है।
हम कहां जा रहे हैं, हमें अपने भविष्य पर ध्यान देना होगा।
मुसलमानों से सात सवाल
1- मुसलमान कैसे और कब एकजुट होंगे?
2- मुसलमान कब एक दूसरे की मदद करेंगे?
3-मुसलमान संगठनों में एकता कैसे आएगी?
4- मुसलमान कब एक साथ वोट देंगे?
5-मुसलमान कब मुसलमान की प्रशंसा करेंगे?
6-मुसलमान मंत्री, सांसद, विधायक, उच्च पदों पर बैठे अधिकारी कब अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर मुसलमानों की बिना शर्त मदद करेंगे?
7-गरीब मुसलमानों की मदद के लिए मुसिलम संगठन कब बनेगा?
एक मुसलमान विचारक इसका जवाब पाना चाहता है।”
इसका जवाब सिर्फ एक ही है कि आपको अपने नबी के तरीके पर आकर इस उम्मत के लिए अपनी जिम्मेदारी तय करनी होगी और उम्मत में खैर खुआई का जज्बा लेकर अपने वसाइल से अपने भाइयों को आर्थिकी सुधारनी होगी। सुन्नत तरीका ही हमारी कामयाबी का एक मात्र तरीका है।
खुर्शीद अहमद सिद्दीकी, 37, प्रीति एनक्लेव, माजरा, देहरादून।