पसोपेशi मै हूं क्या लिखूं और क्या ना लिखूं इसी शशोपंज के साथ यह लेख लिखना प्रारंभ किया है। लख्खी बाग कब्रिस्तान में घर की जगह लेने की मारामारी थी हर तरफ से दबाओ और प्रलोभन का समा मगर उस समय उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड के प्रबंधक शमीम आलम का यह निर्णय कि इस बस्ती में एक स्कूल होना चाहिए एक सराहनीय क़दम था लालच और बस्ती के लोगो का दबाओ में अक्सर लोग ऐसी गलती कर जाते हैं जिसका दंश समाज को दशकों तक झेलना पड़ता है मगर कभी कभी दृढ़ इरादे और इच्छा शक्ति से समाज के हित में इस तरह का काम हो जाता हैं कि उसका फायदा आने वाली नस्लों को सदियों तक होता रहता है यह वह दौर था जब वक्फ की संपत्ति को खुर्द बुर्द होने से बचाने के लिए हर मस्जिद में एक मुहिम चल रही थी और समाज का एक वर्ग लगातार वक्फ को बचाने की जद्दोजेहद कर रहा था मगर वे कामयाब न हो सके खैर काफी दिन शांति रही वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का गठन हुआ और यूपी से वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड उत्तराखंड ट्रांसफर हो गया उत्तराखंड बोर्ड के नए नए अध्यक्ष बने मगर किसी के समझ में नहीं आया कि उत्तराखंड वक्फ संपत्तियों का दुबारा सर्वे कराकर वक्फ के रिकॉर्ड को मजबूत करना चाहिए मगर अपनी कुर्सी और इकतेदार को बचाने के चक्कर में यह भूल गए कि अल्लाह की अमानत को बचाना उनका मकसद और उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी भी हैं और वह भी फी सबिलिल्लाह। मौजूदा दो साल से जायद नियुक्त अध्यक्ष कह रहे हैं कि वक्फ बोर्ड करप्शन का अड्डा है और वक्फ संपत्तियों के घोटाले की सी बी आई से जांच की मांग कर रहे हैं। जांच होनी भी चाहिए मगर सामाजिक दायित्व के अंतर्गत खुद ही दो साल के कार्यकाल का सामाजिक मुहासबा उनको करना और बताना चाहिए कि वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार के बदबूदार वातावरण को क्यों सहा और जीरो टॉलरेंस वाली सरकार में पहले दिन से भ्रष्ट व्यक्तियो के खिलाफ रिपोर्ट क्यों दर्ज नहीं कराई और क्या वक्फ अध्यक्ष रहते हुए वक्फ का हक़ अदा किया क्योंकि यह हिसाब तो हिसाब किताब के दिन होना और देना है। अगर हमे वक्फ की धांधली को रोकना चाहते है तो सबसे पहले वक्फ के औहदेदारो को यह समझना होगा कि वह वक्फ के मालिक नही है बल्कि अमानतदार मुहाफिज है अगर उनके जरिए या उनकी मिली भगत से वक्फ की इमलाक खुर्द बुर्द होती हैं तो रोज कयामत कहां से यह हक्के इबाद पूरा करेंगे दूसरे वक्फ के इस्तेमाल करने वालो को यह समझना पड़ेगा कि वाकिफ ने एक जज्बा इबादत के तहत अपनी निजी मिल्कियत कौम के हवाले की है जिसके ज़रिए इंसानी खैर खुवाई के काम किए जा सकते है वक्फ की इमलाक की हिफाजत की जिम्मेदारी पूरी कौम की है और अगर वक्फ के इस्तेमाल करने वाले ही उस वाकिफ के हक को पूरा नहीं कर रहे हैं और मालिक बने बैठे हैं काबिज है तो मरने के बाद उस ज़मीन के सात तबक अपने सीने पर रखे जाने वाले अज़ाब के लिए तैयार हो जाए। तीसरे वह जमात भी तैयार रहे जो वक्फ के रिफाह ए आम के कामों में झूठ और बदगुमानी पैदा करके बिना वास्तविकता मुस्लिम जरूरतमंदों के रिफाही कामों में रखना डालते हैं वह अन गरीबों का हक देने के लिऐ भी तैयार रहें जो उनको उस वक्फ के जरिए मिलता।
इसलिए इस इबादत वक्फ के मकसद को समझे और जो वक्फ पर अराकीन ए इकतादार जो बैठे हैं और जो वक्फ का इस्तेमाल कर रहें हैं यह समझ लें कि यह जमीन का टुकड़ा अल्लाह ताला के अमानत मकबूल है और इसका गलत इस्तेमाल हक तल्फी के मतारूफ है और कल कयामत के दिन हक तलफी करने वालों को पकड़ लेगा चाहे वह दुनिया में कितना भी ताकतवर था वक्फ को बर्बाद करके दुनिया और आखीरत को बर्बाद ना करो। इसलिए अहले इस्लाम इसका हक़ इसी दुनिया में अदा कर दो।
” फिर पछतावे क्या होत ।
जब चिड़िया चुग गई खेत”
वक्फ बोर्डो के ज़रिए सरकार ने वक्फ पर अपना तसल्लुत कायम किया हुआ है क्योंकि उनकी नियुक्ति सरकार के ज़रिए की जाती हैं इसलिए बोर्ड की ज़िम्मेदारी सरकार के प्रति ज्यादा होती है और सरकार अनुशासन की कारावाई भी कर सकती हैं और वक्फ के सब कामों को व्यवस्थित करने के लिए सरकार वक्फ बोर्ड की आमदनी का 7% लेती है मगर क्या ऐ वक्फ वालो क्या तुम अपने वक्फ के मसाइल आपसी मशवरे से तै नही कर सकते जो बे यारों मददगारों की तरह सरकार से गुहार लगाते हो और अब सरकार भी समझ गई है कि तुम सिर्फ एक दूसरे की टांग खींच सकते हो काम नही कर सकते। इसलिए सरकार तुम से तुम्हारा वक्फ का पूरा अधिकार छीनने की तैयारी कर रही है जिसका बिल हाल ही में जे पी सी को भेजा गया है। एक दूसरे पर इल्ज़ाम तराशी बंद करके अपनी इस विरासत की हिफाजत करने का प्रण करो जो दुनिया में तुम्हारे गरीबों की तरक्की का रास्ता प्रशस्त करता है।
खुर्शीद अहमद