बिलकिस बानो केस में SC का बड़ा फैसला, दोषियों की समय से पहले रिहाई का आदेश निरस्त..

बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है और दोषियों को समय से पहले रिहा करने के आदेश को निरस्त कर दिया है. 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

बता दें कि बिलकिस बानो और उसके परिवार के सदस्यों के साथ दरिंदगी 2002 के गुजरात दंगों के दौरान की गई थी. इस मामले में जस्टिस बीवी नागरत्‍ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की विशेष पीठ ने 12 अक्टूबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

11 दोषियों की रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार को नहीं, बल्कि महाराष्ट्र सरकार को रिहाई के बारे में फैसला लेने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि अपराध भले ही गुजरात मे हुआ हो, लेकिन महाराष्ट्र में ट्रायल चलने के कारण फैसला लेने का अधिकार गुजरात सरकार के पास नहीं है.

15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने दोषियों को किया था रिहा

बिलकिस बानो केस में सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को आजादी के अमृत महोत्सव के तहत गुजरात सरकार रिहा कर दिए गए थे. इसके बाद इस मामले में 30 नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की गई थीं. पहली याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें तुरंत वापस जेल भेजने की मांग की गई थी. जबकि, दूसरी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फिर से विचार करने की मांग की गई थी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मई 2023 में कहा था कि दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार करेगी.

अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो केस में अक्टूबर 2023 में सुनवाई पूरी कर ली थी. कोर्ट ने तब 15 अगस्त, 2022 को गुजरात की छूट नीति के तहत 11 दोषियों को रिहा करने की गुजरात सरकार की कार्रवाई की वैधता के सवाल पर सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान केंद्र, गुजरात सरकार और दोषियों ने सजा में छूट के आदेश के खिलाफ सीपीआई-एम नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, आसमां शफीक शेख और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा था कि जब पीड़िता ने स्वयं अदालत का दरवाजा खटखटाया है, तो दूसरों को इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

साथ ही, दोषियों ने दलील दी थी कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले माफी आदेशों में न्यायिक आदेश का सार है और इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती. दूसरी ओर, एक जनहित याचिका वादी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दलील दी थी कि छूट के आदेश ‘कानून की दृष्टि से खराब’ हैं और 2002 के दंगों के दौरान बानो के खिलाफ किया गया अपराध धर्म के आधार पर किया गया ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ था. जयसिंह ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में देश की अंतरात्मा की आवाज झलकेगी.

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