“हरियाणा के 18 सरकारी स्कूलों में 12वीं का एक भी छात्र पास नहीं – शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल”
चंडीगढ़, 18 मई 2025
हरियाणा की शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। हाल ही में घोषित हुए हरियाणा बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (HBSE) के 12वीं कक्षा के परिणामों ने एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है। राज्य के 18 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहाँ से एक भी छात्र पास नहीं हो पाया। यह स्थिति केवल एक आकड़ा नहीं, बल्कि हमारी सरकारी शिक्षा प्रणाली की सच्चाई को उजागर करती है।
कहाँ-कहाँ हैं ये स्कूल?
इन 18 स्कूलों में सबसे अधिक 6 स्कूल नूंह जिले में हैं, जो पहले से ही देश के सबसे पिछड़े जिलों में गिना जाता है। इसके अलावा फरीदाबाद में 4 स्कूल, जबकि हिसार, झज्जर, करनाल, गुरुग्राम, पलवल, रोहतक, सोनीपत और यमुनानगर जिलों से भी ऐसे स्कूलों की पहचान हुई है।
राज्य स्तर पर क्या रहा प्रदर्शन?
कक्षा 12वीं का कुल पास प्रतिशत: 85.66%
कक्षा 10वीं का पास प्रतिशत: 92.49%
सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन औसत से काफी नीचे रहा, और यह अंतर निजी और सरकारी स्कूलों के बीच की खाई को साफ दिखाता है।
क्या हैं इस गिरावट के कारण?
विशेषज्ञों के अनुसार, इसके पीछे कई कारण हैं:
छात्रों की नियमित उपस्थिति में गिरावट
स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी
शिक्षकों को गैर-शिक्षण कार्यों में लगाना
सरकारी निगरानी तंत्र कमजोर
HBSE के चेयरमैन डॉ. पवन कुमार ने कहा है कि संबंधित स्कूलों के शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि भविष्य में:
शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे,
छात्रों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं आयोजित होंगी,
अभिभावकों से संवाद किया जाएगा ताकि बच्चों की समस्याओं को समझा जा सके,
और स्कूलों की कार्यप्रणाली की नियमित समीक्षा की जाएगी।
क्या “विश्वगुरु” बनने से पहले हमें “शिक्षा गुरु” बनने की जरूरत है?
देश में जब शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं और “विश्वगुरु भारत” की बात होती है, तब इस तरह के आंकड़े हमें हकीकत का आईना दिखाते हैं। अगर एक राज्य के 18 सरकारी स्कूलों में कोई छात्र पास नहीं हो पाया, तो यह केवल शिक्षकों या छात्रों की विफलता नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की असफलता है।
यह समय है जब हमें केवल आंकड़ों से संतुष्ट न होकर गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। जब तक हर छात्र को समान अवसर, बेहतर शिक्षक और सही संसाधन नहीं मिलेंगे, तब तक शिक्षा केवल एक औपचारिकता बनी रहेगी – और ‘विश्वगुरु’ बनने का सपना एक सपना ही रह जाएगा।